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कवितानज़्म
यूं तो औरत की आबरू का मेयार उसकी अना होती है पर माशूक़ा अपने आशिक की मुहब्बतमें फ़ना होती है मआनी कुछ और होते हैं बयाँ कुछ और किया जाता है ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है © 'बशर' بشر.