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ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है. - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है.

  • 20
  • 1 Min Read

यूं तो औरत की आबरू का मेयार उसकी अना होती है
पर माशूक़ा अपने आशिक की मुहब्बतमें फ़ना होती है

मआनी कुछ और होते हैं बयाँ कुछ और किया जाता है
ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है

© 'बशर' بشر.

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