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आज की जरूरत महात्मा गांधी
भारत हमेशा से आध्यात्म, योग, अहिंसा,सहिष्णुता की दिशा दुनिया को दिखाता आया है। लगभग डेढ़ शताब्दी पूर्व के गांधी के विचार ;मिल- जुल कर रहना, परस्पर सहयोग और एकता आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं,प्रेरणा स्रोत हैं, जितने तब थे।
गांधी जनमानस से विस्मृत हो ही नहीं सकते। उनके जन्मदिवस और पुण्य तिथि को उन्हें याद करना पर्याप्त नहीं है। गांधी की शिक्षा को मार्ग दर्शन के रूप में लिया जाना आवश्यक है।
आज हम अपने अधिकारों की मांग अधिक उठाते हैं,कर्तव्यों को पीछे छोड़ रहे हैं।हर व्यक्ति को सब कुछ चाहिए।येन- केन प्रकारेण और तुरत- फुरत। उसे स्वतंत्रता भी चाहिए,वह अनुशासन को अनावश्यक बंधन मानता है।अनुशासन सिखाने वालों पर वह आक्रामक हो जाता है, हिंसा का रास्ता अपना लेता है। प्रजातंत्र भीड़तंत्र में परिवर्तित हो गया है। भीड़तंत्र जिसे भेड़तंत्र कहना उचित होगा। अफवाहों का बाजार गर्म है। उन्हीं अफवाहों के चलते न जाने कितने बेकसूर अपनी जान गवा देते हैं।
"जिसकी लाठी उसी की भैंस" का युग शायद फिर सड़कों पर लौटाना चाहते हैं ,जो अत्यंत दुखद और शोचनीय स्थिति है। ऐसे में,"मजबूरी का नाम महात्मा गांधी "नहीं बल्कि ,"आज की जरूरत महात्मा गांधी"है।असल जिंदगी में गांधीवाद शायद अब व्यावहारिक नहीं रह गया है, लेकिन सैद्धांतिक रूप में इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। गांधी का कहना था कि," धन बिना श्रम के, व्यापार बिना सिद्धांत के, शिक्षा बिना चरित्र के, भोग बिना चेतना के, विज्ञान बिना मानवता के और पूजा बिना त्याग के, यह पाप की श्रेणी में आते है।"
विश्व आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है।विश्व में गांधी की अहिंसा नीति की जरूरत है। गांधी देश की सीमा से इतर हैं। गांधी का दर्शन व्यक्तिवाद से परे है।
राष्ट्र के उत्थान और भाईचारा को कायम रखना है तो विघटनकारी, असामाजिक ताकतों को कुचलना होगा।निजस्वार्थ से ऊपर उठकर किसी प्रतिफल की कामना न करते हुए निरंतर देश के विकास के लिए प्रयत्न करने होंगे।
गांधी स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास है, इस सिद्धांत पर विश्वास करते थे इसलिए स्वस्थ रहने के लिए उपवास, सादा भोजन, शारीरिक श्रम और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।यह गांधी की आत्मिक शक्ति थी कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लेने की ठानी। फिर वह चाहे साउथ अफ्रीका के रंगभेद के खिलाफ मुहिम हो, अथवा चंपारण के किसानों को नील की बंधुआ खेती से मुक्ति दिलाना हो। गांधी का सबसे बड़ा हथियार था- अनशन और अहिंसा । किंतु जहां टकराव की बात करनी हो तो,"भारत छोड़ो" आंदोलन "दांडी मार्च" और,"सविनय अवज्ञा आंदोलन" उदाहरण है, जहां उन्होंने एक निडर नेता की भूमिका बखूबी निभाई।
गांधी के प्रशंसकों में डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग, आंग सान सू की, पंडित नेहरू ,नेल्सन मंडेला, बराक ओबामा इत्यादि प्रतिष्ठित लोग थे।
उनके बारे में अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था," आने वाली पीढ़ियां इस बात पर विश्वास नहीं करेंगी कि हाड़ - मांस का बना हुआ गांधी सरीखा आदमी कभी इस धरती पर था।"
आज गांधी की स्मृतियों को विस्मृत करने का समय नहीं है बल्कि उन्हें और भी प्रभावी ढंग से अनुपालन करते रहने का समय है।
गांधी के बारे में लिखना,' अव्याख्येय की व्याख्या ' करने का प्रयास है,जब उदाहरण,शब्द,प्रतीक और प्रतिमान कम पड़ जाते हैं।
गीता परिहार
अयोध्या