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आज़ाद भारत में एक राजा की फर्जी मुठभेड़
कहानी है भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह की। इनका जन्म 1921 में हुआ था।बड़े भाई बृजेंद्र सिंह महाराज हुआ करते थे।मानसिंह बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे, उन्हें मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने ब्रिटेन भेजा गया।वहां से डिग्री लेने के बाद वह सेकंड लेफ्टिनेंट हो गए, लेकिन यह बात अपने बड़े भाई को नहीं बताई।भरतपुर रियासत के लोग गाड़ियों और महल में दो झंडे लगाते थे एक देश का, दूसरा रियासत का।अंग्रेजों से इसी बात पर इनकी अनबन हो गई और इन्होंने नौकरी छोड़ दी, आज़ादी के बाद यह राजनीति में आ गए।
कांग्रेस का राज था,लेकिन राजा मानसिंह को किसी दल में जाना मंजूर नहीं था। कांग्रेस से उनका समझौता था कि वह उनके खिलाफ उम्मीदवार भले उतारे लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार करने नहीं आएगा। 1952 से 1984 तक वह लगातार निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे। 1977 की जनता लहर और 1980 की इंदिरा लहर में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। लेकिन कुछ लोगों को यह बात खटकती रही कि आखिर भरतपुर रियासत में दो झंडे क्यों लगते हैं। मानसिंह को कांग्रेस वॉक ओवर क्यों देती है। अगर हम दूसरी सीटें जीत सकते हैं तो डीग क्यों नहीं।
1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी।1985 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब शिवचरण माथुर राजस्थान के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने डीग की सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया और रिटायर्ड आईएएस बिजेंद्र सिंह को डीग से कांग्रेस उम्मीदवार घोषित कर दिया।वे 20 फरवरी 1985 को उनका प्रचार करने डीग पहुंच गए। उत्साहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर राजा मानसिंह के पोस्टर, बैनर और रियासत के झंडे फाड़ दिए।
राजा मानसिंह को यह बात नागवार गुजरी। शिवचरण माथुर के पहुंचने से पहले ही वह अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के सभास्थल पहुंचे और मंच को तहस-नहस कर दिया। इसके बाद वह जोंगा जीप से हेलिपैड की तरफ निकले जहां सीएम शिवचरण माथुर का हेलिकॉप्टर खड़ा था। माथुर सभा स्थल की ओर निकल चुके थे और राजा मानसिंह हेलिपैड पर। तमतमाए राजा ने जीप से हेलिकॉप्टर को कई टक्कर मारी। माथुर को सड़क मार्ग से जयपुर जाना पड़ा। इसके बाद वहां पर आक्रोश फूट पड़ा। आशंका जताई गई कि कांग्रेस और राजा के समर्थक भिड़ सकते हैं, इसलिए कर्फ्यू लगा दिया गया। राजा के खिलाफ केस दर्ज कराया गया।
बताया जाता है कि 21 फरवरी को राजा मानसिंह अपने समर्थकों के साथ अपनी जीप से निकले।उनके चाहने वालों ने उन्हें मना किया।उन्हें बताया गया कि कांग्रेस की सरकार है और आपने सीधे मुख्यमंत्री को चुनौती दी है, कर्फ्यू भी लगा हुआ लेकिन राजा मानसिंह का कहना था उनकी रियासत में उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा।राजपरिवार का कहना है कि राजा मानसिंह थाने में समर्पण करने जा रहे थे। तभी डीग मंडी के पास डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी और उसके साथी पुलिसकर्मियों ने उन्हें घेर लिया और ताबड़तोड़ फायरिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। उनके साथ बैठे हरी सिंह और सुमेर सिंह की भी हत्या कर दी गई।पुलिस ने इसे मुठभेड़ साबित करने की हर संभव कोशिश की।उनके दामाद विजय सिंह ने कान सिंह भाटी समेत 18 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करा दिया।
इस घटना के बाद पूरा भरतपुर जल उठा।इसकी तपिश मथुरा, आगरा और पूरे राजस्थान में महसूस की गई।देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी सिटिंग एमएलए का दिनदहाड़े एनकाउंटर किया गया था।तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर पर आरोप लगे कि उनकी शह पर पुलिस ने राजा की हत्या की है। केंद्र तक यह बात पहुंची और 23 फरवरी 1985 को माथुर को इस्तीफा देना पड़ा। हीरा लाल देवपुरा सीएम बने।
इसके बाद हुए चुनाव में राजा मानसिंह की पुत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा विधायक चुनी गईं।मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। इस बीच 1990 में दीपा भरतपुर से भारतीय जनता पार्टी की सांसद चुनी गईं। उन्होंने राजनीतिक विरासत संभालने के साथ ही इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने का प्रतिज्ञा की। उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच मथुरा ट्रांसफर कर दी।
पुलिस ने नृशंस हत्या की थी फिर भी न्याय पाने में वर्षों लग गए।पक्ष से 61 गवाह पेश किए गए और पुलिस की तरफ से 16। एडवोकेट विप्लवी यह साबित करने में सफल रहे कि राजा को घेरकर मारा गया। पुलिस ने राजा की जीप के आगे अपनी जीप अड़ा थी। इसके बाद मानसिंह की कनपटी पर गोली मारी गई जो उनके साथ बैठे 2 और लोगों के सिर में लगी और तीनों की मौत हो गई थी।
मानसिंह के सीने में भी गोली मारी गई थी, गोली नज़दीक से मारी गई थी, अगर मुठभेड़ होती है तो गोली दूर से चलती है।
जीडी में जिक्र किया गया कि राजा मानसिंह की तलाश में पुलिस टीम निकल रही है और उसके 4 मिनट बाद ही मुठभेड़ दिखा दी गई थी।
पुलिसवालों का तर्क था कि राजा से बहस हुई और उन्होंने हथियार निकाल लिए इसके बाद पुलिस ने गोली चलाई।पुलिस ने एक कट्टा बरामद दिखाया।बाद में साबित हो गया कि पुलिस ने प्लांट किया था।राजा के पास तो कोई हथियार ही नहीं था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि गवाहों ने सच-सच सारी बातें कोर्ट को बताईं, कोई गवाह अपनी बात से मुकरा नहीं।
1700 तारीखों , कई जजों के तबादलों और 35 वर्षों के इन्तजार के बाद उनकी आत्मा को शांति मिली होगी जब इस केस में न्याय मिला। 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट पेश की थी, इनमें से 4 की मौत हो चुकी थी, तीन साक्ष्यों के अभाव में बरी हो गए, 13 पुलिसवालों को दोषी पाया गया।अब ये बुढ़ापे में आजीवन कारावास की सजा काटने जेल जा रहे हैं जिनमें रिटायर्ड डीएसपी कान सिंह भाटी भी हैं। यह सभी राजा मानसिंह हत्याकांड के अपराधी हैं।इनसे हत्या करवाने वाले कांग्रेसी नेता ने आराम से मुख्यमंत्री पद का मजा लिया और आराम से स्वर्ग सिधार गए।राजनेताओं के हाथ का कठपुतली बनने वाले पुलिसकर्मियों का यही हश्र होता है।
यह आज़ाद भारत का ऐसा फेक एनकाउंटर था जिसने सरकार की चूलें हिली दी थीं। मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था।