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कवितानज़्म
ना है जीने पर इख़्तियार और न बस में क़ज़ा तेरी, बख़्शी खुशी के लिए ज़िन्दगी बनी क्यूँ सज़ा तेरी! अजब है कफ़स येह ज़िस्म का रुह केलिए 'बशर', चाहकर कैदसे ख़लासी हैनहीं रिहाई की रज़ा तेरी! @"बशर"