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दस प्रतिनिधि कहानियां - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

लेखसमीक्षा

दस प्रतिनिधि कहानियां

  • 201
  • 14 Min Read

पाठकीय समीक्षा
दस प्रतिनिधि कहानियां  (लेखक.. राजेन्द्र राव )
किताबघर प्रकाशन
नयी दिल्ली
प्रतिनिधि कहानियां चुनने में, लेखक से अपेक्षा रहती है कि वे अपनी बहुत अच्छी रचनाओं का ही चयन करते हैं.
राजेन्द्र राव जी की कहानियां भी इस तथ्य पर खरी उतरती हैं

पेशे से मेकैनिकल इंजीनियर राजेन्द्र जी ने फैक्ट्रियों और मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया है, बाद में वे पत्रकारिता में आ गये. उनके पिता जी भी सरकारी उद्यम की एक कम्पनी में अधिकारी थे अतः, वे बचपन से ही फैक्ट्री एस्टेट में ही पले-बढ़े.


राजेन्द्र राव की कुछ कहानियों में फैक्ट्री के आन्तरिक संचालन की सभी बारीकियां दिखती हैं.
मिलों का, यूनियनबाजी से, कुछ मिल मालिकों का यूनियन के नेताओं के साथ मिलकर, मिल को खोखला बनाने के कुत्सित कार्य कलाप, दिखते हैं. मजदूरों को बेरोजगार और बर्बाद होना.

घाटेवाली, खोखली हो चुकी मिलों को जबरन, सरकारों पर लादना जो घाटों से कभी उबर नहीं पातीं.

वैदिक हिंसा भी एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है

' घुसपैठ'. एक हवाई जहाज बनाने वाली फैक्ट्री के कार्यकलाप दिखाती हुई कहानी है, कैसे पहले 9 महीनों में 3 जहाज बनते हैं और आखिरी 3 महीनों में बाकी के 9 जहाज किस तरह से बनाये जाते हैं. जिसमें नीचे के कर्मचारियों से लेकर जी एम स्तर केश् अधिकारी तक सब जी जान से लगते हैं.
मार्च का महीना बड़ा कातिल होता है. जब फाइनल असेंबली का बड़ा सा स्टील हैंगर कत्लगाह बन जाता है. सब कुछ छोड़कर " मिशन इम्पासिबल" पर जुट जाते हैं. इसमें सबसे ज्यादा मददगार होती है. "एक अद्भुत क्रासकल्चर" जो इस हैंगर की चारदिवारी से बाहर आपको ढूंढें न मिलेगा.
जहाज पूरा करने में छोटे से छोटे श्रमिकों का महत्वपूर्ण हाथ होता, टेकनीशियनों को पूरा सम्मान दिया जाता, युवा जुझारू मैनेजमेंट ट्रेनी इन्जीनियर, जिसके जुझारूपन के लिए उसे 'तेंदुलकर' कहा जाता है, भी साथ में खून-पसीना एक करता है, धीरे-धीरे पूरी टीम भावना से, आखरी हवाई - जहाज भी पूरा होकर हैंगर में स्थापित हो जाता, फिर फैक्ट्री में सब मिलकर जश्न मनाते हैं,
कैसे एक एप्रेंटिस के ड्यूटी पर गम्भीर रूप से घायल होने पर जी एम, ए जी एम. उसके तुरंत मंहगे, प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाने की गुंजाइश तलाशते हैं.क्योंकि नियमत:, वह इसका पात्र नहीं है, तेंदुलकर बड़ा साहब होते हुए भी, चौबीसों घंटे, उस श्रमिक की स्थिति की निगरानी करता है., अपने पास से पैसे भी जमा कराता और खून भी देता है. सभी के टीम वर्क की बहुत अच्छी रचना है.
अन्ततोगत्वा, सभी मिलकर जी जान लगा कर उसे बचा लेते हैं.
तेंदुलकर को, कम पढ़े लिखे लेकिन फैक्ट्री के लिए अपरिहार्य स्किटल्ड टेक्नीशीयन, जो अपनी टेक्नीक के राज किसी को कभी नहीं बताते, अपने आन्तरिक गैंग में शामिल कर लेते है.

'छिन्नमस्ता, नौसिखिया', असत्य के प्रयोग, लौकी का तेल, बाकी इतिहास, उत्तराधिकार आदि अन्य कहानियाँ भी बहुत अच्छी हैं.

लेखक संप्रति '' दैनिक जागरण '' में साहित्य संपादक हैं और
कानपुर में निवास करते हैं.

कमलेश वाजपेयी
नौएडा

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