Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
अनपढ़ होना एक अभिशाप - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

अनपढ़ होना एक अभिशाप

  • 65
  • 14 Min Read

*यादों के झरोखे से*

"अनपढ़ होना एक अभिशाप ,,"

घटना 1958 की है।मैं कानपुर में मनीराम बगिया के नगर पालिका बेसिक स्कूल में कक्षा 5 में पढ़ता था। उस समय कानपुर में या तो सरकारी स्कूल थे या फिर अंग्रेजी मीडियम के क्रिश्चियन स्कूल होते थे।आज की तरह प्राइवेट स्कूलों का चलन न के बराबर ही था।
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई और डिसिप्लिन का स्तर बहुत अच्छा होता था और अमीर गरीब सब एक साथ पढ़ते थे।
मेरे क्लास में एक मोहन लाल (बदला हुआ नाम) नाम का लड़का पढ़ता था।वह उम्र में हम सबसे 3,4 साल बड़ा था।पढ़ाई लिखाई में वह कमजोर था। वह दो बार पांचवीं में फेल हो चुका था।इसके अतिरिक्त उसमें एक बड़ा अवगुण और था कि वह चोर भी था।अक्सर लड़कों का सामान चुरा लेता था।वह स्कूल और स्कूल में रहने वाले चपरासी का छोटा मोटा समान भी पार कर देता था।
इस कारण कई बार वह विद्यालय से निकाला भी गया।पर हर बार उसकी मां हेड मास्टर साहब के समाने इस तरह रोती गाती कि उन्हें दया आ जाती और वह उसे चेतावनी देकर फिर पढ़ने की इजाजत दे देते।
इस बार मोहन सालाना परीक्षा के पहले किसी बात पर स्कूल से फिर निकाल दिया गया।
हमेशा की तरह उसकी मां फिर हेडमास्टर साहब के पास आई।उसने कहा "साहब बस आखिरी बार और माफ़ कर दीजिए अब इसके बाद मैं आपके पास कभी नही आऊंगी।
साब मैं जानती हूं मेरा बेटा चोर है इसमें यह बहुत बड़ी बुराई है।
साब चोरी की आदत तो बड़े होकर इसकी छूट भी सकती है मगर पढ़ाई अगर एक बार छूट गई तो फिर नही कर पायेगा।
साब बिना पढ़ा लिखा होना तो चोरी से भी बड़ा अभिशाप है।
साब इसको किसी तरह पांचवां तो पास करवा ही दीजिए, मैं आपका अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी।

इसके बाबू तो हैं नहीं, हो सकता है आप सबकी दया से यह अच्छा निकल जाय।"
इस बार मोहन बोर्ड की परीक्षा पास हो गया। (उस समय पांचवी और आठवीं भी बोर्ड परीक्षा होती थीं।)
अब हम लोग अलग अलग स्कूलों में पढ़ने चले गए।
समय निर्वाद गति से बीतता रहा। सन 1976 की बात होगी मोहन लाल मुझे नया गंज में दिख गया, वह अभी भी पहचान में आ रहा था,ज्यादा बदला नहीं था, वह भी मुझे पहचान गया।

वह यहां पान की दुकान लगाता है।
उसने कुछ शर्माते हुए बताया " गोपाल मैने अपनी बुरी आदत पांचवी पास करने के बाद हमेशा के लिए छोड़ दी थी,और आगे की पढ़ाई दोसर वैश्य विद्यालय से पूरी की थी। हाई स्कूल के आगे नहीं पढ़ पाया था।क्योंकि मां के मरने के बाद घर का खर्च तो मुझे ही चलाना था।मेरी एक बहन है, जो विकलांग है, वह मेरे ही साथ रहती है, तभी ये दुकान किसी तरह मामा जी की सहायता से कर ली थी।

मेरा एक बेटा है जो मैथोडिस्ट, स्कूल में पढ़ रहा है।

आज मुझे मोहन की मां की वह बात याद आ गई, जो उसने हेड मास्टर जी से कही थी। "साब चोरी की आदत तो इसकी छूट भी सकती हैं ,पर पढ़ाई अगर छूट गई तो ये फिर पढ़ नहीं पाएगा।"

आज ये संस्मरण लिखते हुए मैं मोहन की मां के विषय में सोच रहा हूं।
उस बिना पढ़ी लिखी महिला, ने पढ़ाई के विषय में
कितनी सच और बड़ी बात कही थी "साब अपढ़ होना तो चोरी से भी बुरा अभिशाप है"

यायावर गोपाल खन्ना
कानपुर

IMG-20221027-WA0044_1669206912.jpg
user-image
समीक्षा
logo.jpeg