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मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए

  • 14
  • 3 Min Read

बेकार की हैं सब बातें महज़ बनाने केलिए,
आदमी के पास कुछ बचा ही नहीं बताने केलिए!१

इस क़दर मुखौटे पे मुखौटा बदल चुका है बशर,
चेहरा उसके पास बचा ही नहीं दिखाने केलिए!२

नकली अपनी बत्तीसी दिखाने की आदत से लाचार,
मुंह में दांत असली बचे ही नहीं मुस्कुराने केलिए!३

फिरके मज़हब धर्म और येह तमाम दैर-ओ-हरम
मुआसरे की दीवारें तमाम उठी हैं गिराने केलिए!४

बे-मानी बातें सारी बनी मतलब की ज़माने केलिए
बे-मतलब के मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए!५
@"बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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