कविताअन्य
हिन्दी दिवस विशेष
शीर्षक- हिंदी क्या है?
मनोभावों का सुन्दर-सुथरा दर्पण होती है हिंदी,
कभी प्रेम द्योतक कभी आत्मसमर्पण होती है हिंदी,
कभी कृष्ण की गीता.., कभी-कभी रामायण होती है,
विश्वगुरु के आदर्श समाहित ऐसी पाक-परायण होती है।
कभी कबीर का दर्शन तो कभी हिन्द की शक्ति होती है,
कभी सूर तो कभी मीरा की.., पावन हरी भक्ति होती है,
कभी-कभी समता की जननी कभी क्रांति की सरिता होती है
कभी-कभी भूषण-दिनकर की ओज भरी कविता होती है।
कभी खास तो कभी हास की कोई मधुर रचना होती है,
कभी प्रेम के गीतों की...., मीठी-मीठी रसना होती है,
कभी हास्य-व्यंग भाव में प्रेरणा का सम्मिश्रण होती है,
प्रेमचंद के कथा प्रसंग में सम्प्रदाय का चित्रण होती है।
कभी पुकार हिन्द की, कभी वीरों की जयगाथा होती हैं,
कभी-कभी स्वराष्ट्र-धर्म के सब भावों की दाता होती है,
जीवन सिखलाती वेद-सार से, सब दुखो की त्राता होती है,
भाव भरे समता का जिससे हिंदी ऐसी भाग्य विधाता होती है।
भाव भरे समता का जिससे हिंदी ऐसी भाग्य विधाता होती है।।
बहुत सुंदर विश्लेषण किया है आपने हिंदी भाषा का
नेहा शर्मा जी बहुत बहुत आभार.....प्रणाम