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मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है

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  • 2 Min Read

गैरों के सुकूँ से परेशाँ होने वालों में कहाँ गैरत होती है
हम को तो उन की इस बे -गैरत पर बड़ी हैरत होती है

औरों की खुशी में शरीक होने का राज़े-जुनूँ कुछ नहीं
ऐसे मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है

........................... © dr. n. r. kaswan 'bashar' بشر

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