कवितानज़्म
गैरों के सुकूँ से परेशाँ होने वालों में कहाँ गैरत होती है
हम को तो उन की इस बे -गैरत पर बड़ी हैरत होती है
औरों की खुशी में शरीक होने का राज़े-जुनूँ कुछ नहीं
ऐसे मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है
........................... © dr. n. r. kaswan 'bashar' بشر