कविताभजनलयबद्ध कविताछंदचौपाईगीत
"श्रीराधा-अमृत चौपाई भाग -2"
धुल धूसरित कपोल कल्पना।
राधा टेर काम न पोषणा।।
कर वासना पर पद प्रहारा।
ले राधा नाम कर विहारा।।
जान औसर लियो वैरागा।
निकसी केतिक साचा रागा।।
शीश धर चारु चरण परागा।
सबै अराधै राधा-राधा।।
भिरुता दुराचार अलापना।
लोभ मोह सपृहा विकारना।।
तिनसे रक्षण तिनका अँगना।
सकल आधार राधा रमना।।
काष्ठ तपाकर भस्म बनाती।
कृसानु स्वर्ण भूषण बनाती।।
एहि भाँति नाम रस बखारा।
मोह भंजक नव रुप उबारा।।
तरुवर भुधर अतुल संरचना।
धरा हित से न करें वंचना।।
राधा नाम रस समान रुपा।
मानव हित का उपाय अनुपा।।
राधा नाम गोविंद जपहैं।
बिन राधा क्षण भर नहि बसहैं।
राधा रुप सदा प्रेम व्यापी।
नाम गुण चैतन्य अविनाशी।
जौ चक्र उर्ध्व रेखा पुष्पा।
छत्र कंकण कमल ध्वज अँकुशा।।
अर्धचंद्र पुष्पलता चिनहा।
बाएं चरण को ध्यान किनहा।।
शंख गिरी मीन गदा वेदी।
रथ पाश कुंडला गगनेसी।
कृपा करो हे नवल किशोरी।
मनभावन रति अति ही भोरी।।
एक ही नीति जीवन माही।
वृंदावन छाडि प्रीति नाही।
दर्शन पाउं सकल गुणीता।
जीवन रस रसिकिनी पुनीता।।
रचियता:-हेमंत।
जयकारा श्रीराधा श्रीराधा।