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अपने हासिल को ही खोता गया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अपने हासिल को ही खोता गया

  • 11
  • 1 Min Read

जितने ज्यादा भीड़ बढती बढती गई
इन्सान उतनाही ज्यादा अकेला होता गया
ला - हासिल को पाने की कोशिश में
आदमी अपने हासिल को ही खोता गया!!
@"बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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