कवितालयबद्ध कविता
बोलूं तो, बीते हुए काल-खंड से सीखा हैं,
मन के दुविधा का प्रतिफल अति तीखा हैं,
जीवन पथ पर बढ़ना सही हैं संयम से,
मानक बिंदु पर जीने का यही सही तरीका हैं।।
माना, कुछ भूल हुआ था अतीत काल में,
भ्रम के आभा-मंडल में जो लिपट गया था,
अब समझा हूं, साथ चाहिए जीवन से,
जीवन का रस संयम के बिन फीका हैं।।
अंबर, जो तारों का घर, रंग लिए हैं नीला,
जीवन का उत्सव, मानव बनने नशा-नशीला,
मानव हो चुन लूं पुष्प शांति के उपवन से,
चिंतन में फिर खोऊँ, जीने का यही सलीका हैं।।
बीता जो काल-खंड, उष्णता लिए हुए प्रचंड,
मन जो हुआ था उद्विग्न, उठता था तरंग,
फिर इसका हुआ प्रभाव, बंधा द्वंद्व के बंधन से,
हृदय पर गहरा हैं घाव, हुआ प्रभाव इसी का हैं।।
मन नितांत अब बनूं शांत, समझा हूं जो वृतांत,
अभिलाषा के सागर में मौजा, करें भय-कांत,
इनका तीव्र प्रभाव, भीगूं शांति रस चंदन से,
और सहृदय बनूं, इसका प्रतिफल मिश्री का हैं।।
बीता हुआ जो काल-खंड, लिए हुए था अहं दंड,
दुविधाओं का पहने लिबास, स्वार्थ भी था प्रचंड,
निर्मल मानव हो जाऊँ, छूट के इसके बंधन से,
मन जो हुआ भ्रमित था, सारा फसाद इसी का हैं।।