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कवितानज़्म
हम अपने घर बसाने आए थे भगवान के घर बना बैठे कहींपर हम मस्जिद बना बैठे कहींपर मंदिर बना बैठे गुरुद्वारा साहिब मठ कहीं पर हम गिरजाघर बना बैठे हम से तो भली जात परिंदे की चाहे जिस घर जा बैठे @"बशर"