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कवितानज़्म
बेरुखी आवाज़ और तल्ख़ अल्फ़ाज ही दिलपर चोट नहीं करते, उनकी मुसलसल ख़ामोशियों से मिले घाव भी जल्द नहीं भरते! © 'बशर' بشر.