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शर्बत ए सुकूँ भीतर है बाहर खारा समंदर है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

शर्बत ए सुकूँ भीतर है बाहर खारा समंदर है

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तू जिस को बाहर ढूंढता है वोह तिरे अंदर है
शर्बत ए सुकूँ भीतर है बाहर खारा समंदर है
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر

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