कवितालयबद्ध कविता
नूतन वर्ष का अभिनंदन
आवाहन नववर्ष तुम्हारा
धर्म-द्वेष,वर्ग-द्वेष मिटाकर
नव उमंग संग अभिनंदन तुम्हारा।
प्रकृति का संवर्धन-संरक्षण
जीव-जगत की रक्षा धर्म हमारा
खुशहाली,सौहार्द का हो उजियारा।
नव वर्ष हो मंगलमय जन-जन का
हंसी - खुशी यह पर्व मनाएं
सर्वहित ही लक्ष्य बनाएं।
बीत गई सो बीत गई ,
आगे की राह बनाएंगे
नव गीत सरस हम गाएंगे।
उन्नत भारत के भाल पर
इतिहास नया रचाएंगे
नव प्राण से अनुप्राणित हो।
स्वागत में झुक जाएंगे।
उन्नति ,सुख, समृद्धि हो
संकल्प यही दोहराएंगे।
गीता परिहार
अयोध्या