कविताअतुकांत कविता
दुख के दिन भी गुजर जाएंगे
सुख के दिन फिर से आएंगे
हारकर हिम्मत न रोना कभी
ज़िंदगी तो परीक्षा लेती है हर घड़ी।।
संकट चली जाएगी फिर से अपने घर
ख़ुशी आएगी फिर एक दिन घर
अश्रु पोछकर मुस्कुरा तू जरा
हिम्मत न हार तू पथिक कभी।।
विपत्ति होगी दूर ज़रूर इक दिन
ख़ुशी आएगी फिर एक दिन
मायूस न हो राही तू इस घड़ी
मन में रख विश्वास तू हर घड़ी।।
ज़िंदगी तो लेती है परीक्षा हमारी
देखना चाहती है हम में हिम्मत है या नहीं
दिखा दे तू ज़िंदगी को आज
हम नहीं मानते हैं हार कभी।।
माना हलचल मची हुई है हर ओर
रो रहे हैं निर्धन खूं के आंसू
पर हार मान क्या हम जीत पाएंगे
बिल्कुल नहीं इसलिए हार मत मान कभी।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित