Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
पढ़तो लेता है अक़्सर हरकोई येह किताब-ए-हयात हरकिसी को मग़र समझ आती नहीं ज़ीस्त की बात दिन भी देखा रात भी देखी मग़र बशर पता नहीं कि आते हैं कैसे जाते है कैसे चांद सूरज और दिन -रात @ डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر