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कच्चे रास्ते (भाग १०) साप्ताहिक धारावाहिक - Ashish Dalal (Sahitya Arpan)

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कच्चे रास्ते (भाग १०) साप्ताहिक धारावाहिक

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कच्चे रास्ते (भाग -१०)

सुबह आठ बजने तक अपने संपर्को का उपयोग करके मनीष ने शालिनी के अंतिम संस्कार की सारी तैयारियाँ फोन के माध्यम से ही कर ली थी । अब वो और राजीव बाहर फ्लैट की सीढ़ियों पर बैठे हुए थे. रात की ड्यूटी पर रहा वॉच मेन रेसीडेंसी के कुछ लोगों को शालिनी की मौत के बारें में बता चुका था । जिन जिन लोगों से काव्या और शालिनी का परिचय था वे लोग एक बार आकर काव्या से मिलकर चले गए थे ।

काव्या को फर्श पर पालथी मारकर बैठने की आदत नहीं थी इसलिए लगातार पाँच घण्टे नीचे फर्श पर बैठे रहने से उसे अब पैरों में दर्द होने लगा था और वह अब ठीक से नीचे बैठ नहीं पा रही थी । अनय गैलरी में खड़ा मोबाइल पर किसी को काव्या के फ्लैट का पता बताते हुए कह रहा था, “नहीं... नहीं । मेरे फ्लैट की तरफ से काव्या के घर आने के रास्ते पर गटर लाइन का काम चल रहा है तो आप लोग हाइवे वाले रूट से ही आयें ।”

फोन पर बात करते हुए अनय का ध्यान अन्दर हॉल में हो रही गतिविधियों पर भी था । अनिकेत उठकर काफी पहले ही सोफे पर बैठ चुका था । रागिनी अपनी जगह पर जैसे बैठी थी वैसे ही अभी भी बैठी थी । तभी अपनी ड्यूटी पूरी कर घर जाने से पहले वॉचमेन अन्दर आया । काव्या का चेहरा दरवाजे की तरफ ही था इसी से वो हर आने जाने वाले को आसानी से देख पा रही थी ।

वॉचमेन हाथ जोड़कर दरवाजे के पास ही खड़ा हो गया और काव्या से कहने लगा, “गजब हो गया बिटिया । ईश्वर बहनजी की आत्मा को शान्ति दे । तू हिम्मत रखना बिटिया ।”
जवाब में काव्या ने हाथ जोड़ दिए और वॉचमेन के दिल में अपने लिए रही भावनाओं को महसूस कर उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । वॉचमेन ने दूर से शालिनी की डेथ बॉडी को देखा और आदर से अपना सिर झुका लिया । उसने शालिनी की बॉडी के पास बैठी रागिनी को राम राम कहा और जाने के लिए वापस मुड़ गया ।

वॉचमेन के जाते ही लगभग पचास साल की एक औरत अन्दर आई । उसने सफेद कलर की साड़ी पहन रखी थी और माथे पर छोटी सी काले रंग की बिंदी लगा रखी थी । उसके हाथ में एक थर्मस था । उसे देखकर काव्या अपनी जगह से खड़ी हो गई । वह औरत काव्या के पास आई और उसे अपनी छाती से लगा लिया । उससे लिपटकर काव्या की आँखें फिर से गीली हो गई । उसने काव्या की पीठ पर अपना हाथ फेरा और फिर थर्मस को सोफे पर रखकर वो शालिनी की बॉडी के पास गई । खड़े-खड़े ही उसने हाथ जोड़ दिए और फिर काव्या की तरफ मुड़कर पूछने लगी, “अचानक से क्या हो गया ? कल शाम को शालिनी नीचे घूम रही थी ।”

काव्या पहले तो समझ नहीं पाई कि वो क्या जवाब दे फिर उसने रागिनी की तरफ देखा । रागिनी अभी कुछ बोलने जा ही रही थी गैलरी के दरवाजे के पास खड़ा अनय बोल उठा, “हार्ट अटैक था । रात को घर पर कोई था नहीं तो ...”

रागिनी को अनय का इस तरह से बीच में दखलंदाजी करना पसंद नहीं आया ।

“हे ईश्वर ! सब तेरी माया है।” अनय से जवाब पाकर वह औरत बोली और फिर उसने काव्या को थर्मस देते हुए कहा, “इसमें चाय है । थोड़ी-थोड़ी सब लोग पी लो । तुम लोग रात से ऐसे ही बैठे हो। मुझे तो अभी सुबह पता चला ।”

इस पर काव्या ने मना करते हुए कहा, “नहीं,मौसी । गले से नहीं उतरेगी ।”

वह औरत सोफे पर बैठते हुए बोली, “कब तक नहीं खाएगी पिएगी ? मन मजबूत रखने के लिए शरीर को भी मजबूत रखना पड़ेगा ।”

काव्या ने फिर से मना किया तो उस औरत ने सोफे पर बैठे हुए अनिकेत से कहा, “जा बेटा, अन्दर से कप ले आ ।”

अनिकेत ने रागिनी की ओर देखा । रागिनी ने इशारे से हाँ कह दिया तो वो उठकर कीचन में चला गया और कपबोर्ड में से कुछ कप निकाल लाया ।

काव्या इस बार मौसी के स्नेहभरे आग्रह को मना नहीं कर सकी और फर्श पर बैठकर थर्मस में से थोड़ी-थोड़ी चाय कप में डालने लगी । उसने सारे कप भरकर एक कप उस औरत की तरफ बढ़ा दिया ।

“मैं तो पीकर आई हूँ । ये तुम लोगों के लिए ही है।” उस औरत ने चाय लेने से मना करते हुए कहा तो काव्या ने भी ज्यादा आग्रह नहीं किया । उसने उस कप की चाय बाकि सारे कप में डाल दी और अनिकेत को दो कप बाहर मनीष और राजीव को दे आने को कहा । एक कप उसने रागिनी की तरफ बढ़ा दिया और फिर अनय को आवाज लगाकर चाय ले लेने को कहा । उसने एक कप अनिकेत को दिया और फिर खुद भी जल्दी-जल्दी चाय पीने लगी । वो पूरा कप चाय नहीं पी पाई और आधा भरा हुआ कप उसने सोफे के पास रख दिया । अब वो रागिनी को सोफे पर बैठी औरत का परिचय देने लगी ।

“ये शगुन मौसी है । डी विंग में रहती है । ये फ्लैट इनका ही है । ये यहाँ अकेली ही रहती है । इनका बेटा अपनी फैमिली के साथ यू एस ए में है ।”

रागिनी ने शगुन मौसी का परिचय पाकर उन्हें नमस्ते कहा और जल्दी-जल्दी चाय पीकर खाली कप काव्या की तरफ बढ़ा दिया ।

तभी दरवाजे के पास रूबी आकर खड़ी हो गई । उसने सफेद कलर की सलवार कुर्ती पहनी हुई थी और अपने छोटे छोटे बालों को गूँथकर छोटी सी चोटी बनाई हुई थी । ऑफिस में हमेशा ही वेस्टर्न कपड़ों में रहती रूबी को अनय आज पहली बार सलवार कुर्ती पहने हुए देख रहा था । वह इस भारतीय पोशाक में और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी ।

काव्या को देखकर वो अन्दर चली आई और उसके पास फर्श पर ही बैठ गई । उसने काव्या का हाथ अपने हाथ में लेकर उससे सहानुभूति जताई और फिर शालिनी की डेड बॉडी के सामने अपना सिर झुका लिया । थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो धीरे से काव्या से बोली, “अमोल सर वील बी हिअर इन अ व्हाइल. एच आर में से शायद मिस डेजी आएँगी ।”

रूबी की बात सुनकर काव्या ने कोई जवाब नहीं दिया । तभी राजीव अन्दर आया और कहने लगा, “साढ़े आठ बज रहे है । साढ़े नौ तक शववाहिनी आ जाएगी । तब तक दीदी को स्नान वगैरह करवा दो । पण्डित जी भी पंद्रह बीस मिनिट में आ जायेंगे ।”

राजीव की बात सुनकर काव्या की रुलाई फूट पड़ी और हिचकियाँ लेते हुए वो रोने लगी । रूबी ने उसे सम्हाला और वहाँ से उसे लेकर गैलरी में आ गई । अनय और रूबी दोनों काव्या को इस वक्त हिम्मत दे रहे थे । उसी वक्त रेसीडेंसी की कुछ औरतें अन्दर आकर बैठ गई ।

तभी रागिनी ने खड़े होकर गैलरी में आकर अनय से कहा, “तुम थोड़ी देर के लिए बाहर चले जाओ । जीजी की बॉडी को स्पंज करना है और कपड़े बदलना है ।”

रागिनी की बात सुनकर अनय फौरन बाहर निकल गया और उसके पीछे अनिकेत भी बाहर आ गया । दोनों के बाहर निकलते ही रागिनी ने बाहर का दरवाजा बंदकर लिया और फिर काव्या के साथ रूबी को अन्दर लेकर गैलरी का दरवाजा भी अन्दर से बंद कर लिया ।

अनय अनिकेत के साथ ग्राउण्ड फ्लोर पर आ गया । रेसीडेंसी के कम्पाउंड में इस वक्त कुछ पुरुष और महिलायें आपस में बातें करते हुए खड़े थे । उनके बातचीत करते हुए उनकी बॉडी लैंग्वेज को देखकर अनय ने अनुमान लगाया कि वे लोग काव्या की मम्मी की डेथ के बारें में ही बात कर रहे है ।

अनय और अनिकेत के बीच अब तक कोई बात नहीं हुई थी । अनिकेत वैसे भी बहुत कम बोलता था और अन्तर्मुखी था । वह अनय के साथ चुपचाप ही खड़ा था इस पर अनय ने उससे बातचीत का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा, “कौन से स्टैंडर्ड में हो ?”

अनिकेत ने धीमे स्वर में जवाब दिया, “ट्वेल्थ”

“साइंस या कॉमर्स ?” उसका जवाब पाकर अनय ने आगे पूछा ।

इस पर अनिकेत बोला, “साइंस बायो”

“बहुत बढ़िया । डॉक्टर बनना चाहते हो ?” कहते हुए अनय ने उसकी पीठ थपथपा दी ।

अब अनिकेत अपने सपनों के बारें में बताते हुए बोला, “नहीं । आइ लव प्लांट्स । मैं बारहवीं के बाद बोटनी लेकर कॉलेज करूँगा । मैं प्रोफेसर बनना चाहता हूँ ।”

अनिकेत का जवाब सुनकर अनय प्रभावित हो गया । वो बोला, “गुड । कोई तो है जो इंजिनियर और डॉक्टर की दौड़ से बाहर है ।”

तभी गेट से अन्दर आकर हल्के नीले रंग की स्विफ्ट विजिटर पार्किंग एरिया में आकर रुक गई । अनय कार का कलर देखकर ही समझ गया कि ये अमोल सर की गाड़ी है । वो आगे बढ़कर उनके पास गया । उनके साथ समीर और मिस डेजी भी थी । इतनी देर में ऑफिस के चार पाँच और कलीग्स भी वहाँ पहुँच गए ।

अनय ने अमोल सर से कहा, “काव्या का फ्लैट टॉप फ्लोर पर है ।”

अनय की बात सुनकर अमोल सर ने कहा, “ओके । देन लेट्स गो देअर ।”

अनय को नीचे आये हुए करीबन पंद्रह मिनिट हो चुके थे । उसने हाँ में सिर हिला दिया और सभी को लेकरलिफ्ट की तरफ चलने लगा ।

वो सब काव्या के फ्लैट पर पहुँचे तक तक राजीव नहा धोकर तैयार हो चुका था और पण्डित जी के साथ शालिनी के पैरों के पास बैठकर शालिनी की अन्तिम क्रिया की शुरुआत कर चुके थे ।

काव्या ने अमोल सर और ऑफिस के कलीग्स को देखकर हाथ जोड़कर उनका थैंक्स कहा और अपनी आँखों से बह रहे आँसुओं को पोंछने लगी । उसका ध्यान समीर पर नही गया । यहाँ खड़े रहने के लिए पर्याप्त जगह न होने से अमोल सर और काव्या के कलीग्स वापस नीचे चले गए । अनय अनिकेत के साथ गैलरी में जाकर खड़ा हो गया ।

अन्तिम क्रिया की पूजा खत्म होते ही नीचे रेसीडेंसी के बाहर शववाहिनी भी आकर खड़ी हो गई । शालिनी की डेड बॉडी को लिफ्ट से नीचे ले जाना संभव नहीं था । राजीव, मनीष, अनय, अनिकेत और रेसीडेंसी के कुछ लोगों ने शालिनी की डेड बॉडी को सीढ़ियों से नीचे उतारा । शालिनी की बॉडी को कुछ देर के लिए रेसीडेंसी के कम्पाउंड में रखा गया ।
आये हुए सभी लोगों के अंतिम दर्शन कर लेने के बाद राजीव, मनीष, अनिकेत और अनय ने शालिनी को कंधा दिया और कम्पाउंड के बाहर खड़ी शववाहिनी तक लेकर चले गए ।

काव्या, रागिनी, रूबी और शगुन मौसी के साथ साथ रेसीडेंसी की औरतें पीछे-पीछे चलकर शववाहिनी तक आई । काव्या को अब सम्हालना मुश्किल हो रहा था । रोते हुए वो बार बार बोले जा रही थी, “आइ एम सॉरी मम्मी । मुझे माफ कर दो मम्मी ।”

रागिनी और रूबी ने काव्या को पकड़ रखा था । तभी राजीव जोर से बोला, “राम नाम सत्य है ।” और शववाहिनी में चढ़ गया । अनय और अनिकेत उसके साथ ही थे । मनीष ने अपनी कार ले ली थी ताकि वापस लौटते हुए आसानी रहे । शववाहिनी के दूर जाते ही काव्या के ऑफिस का स्टॉफ भी उसे हिम्मत रखने को कहकर वहाँ से चला गया ।

काव्या अपनी डबडबाई आँखों से शववाहिनी को दूर जाते हुए देख रही थी । कुछ देर वहाँ खड़ी रहने के बाद रेसीडेंसी में रह रही औरतें अपने अपने घर को जाने लगी । रागिनी ने काव्या का हाथ थाम रखा था । उसने उसे भी अन्दर चलने को कहा तो वो रागिनी से लिपट कर रोने लगी और बोलने लगी, “मामी, मैं अकेली हो गई । मम्मी क्यों मुझे छोड़कर चली गई ।”

रागिनी पहले से ही बहुत दुख हो रहा था और इस पर काव्या के ऐसा कहने पर वो और ज्यादा दुखी हो गई । उसने काव्या की पीठ पर हाथ फेरा और बोली, “तू अकेली नहीं है । तेरे मामा मामी तेरे साथ है ।”

तभी रूबी ने काव्या को रागिनी से अलग करते हुए समझाया, “काव्या, हिम्मत रखो । मैं, अनय... हम सब तुम्हारे साथ है ।”

काव्या अब अपने आँसू पोंछने लगी और रागिनी और रूबी के साथ वो अपने फ्लैट की तरफ जाने लगी ।

करीबन दो घण्टे के बाद जब राजीव, मनीष, अनिकेत और अनय वापस आये तब तक दोपहर के बारह बज चुके थे ।

ऊपर आते हुए मनीष ने जब लिफ्ट छठवी मंजिल पर रोकी तो राजीव ने हाथ जोड़कर थैंक्स कहते हुए कहा, “आपने बहुत कुछ सम्हाल लिया भाई साहब वरना इस दुख की घड़ी में मेरे अकेले के लिए ये सब कर पाना आसान नहीं था ।”

राजीव की बात सुनकर मनीष ने लिफ्ट से बाहर जाते हुए जवाब दिया, “ये तो मेरी भी जिम्मेदारी थी ।”
लिफ्ट ऊपर सातवीं मंजिल पर आकर रुक गई ।

रागिनी और काव्या नहा चुकी थी । रूबी भी अपने घर को लौट गई थी । शगुन मौसी नहा धोकर वापस यहीं आ गई थी और कीचन में चाय बना रही थी । काव्या ने उनका ये फ्लैट लगभग सात महीने पहले ही किराये पर लिया था लेकिन उन्हें काव्या से न जाने क्यों बहुत ज्यादा लगाव हो गया था । वे उसे अपनी बेटी की तरह रखती थी और जब भी खाने में कुछ खास बनाती तो काव्या को यादकर जरुर दे जाती ।

काव्या दीवार का सहारा लेकर नीचे फर्श पर बैठी हुई थी । रो - रोकर उसकी आँखें सूज चुकी थी । रागिनी उसके पास ही अपने घुटनों पर हाथ रखकर बैठी हुई थी । तभी अनय
काव्या के पास आया और फर्श पर घुटनों के बल बैठे हुए बोला, “काव्या, मैं अब जाता हूँ । शाम को वापस आऊँगा ।”

काव्या ने अनय को एक पल के लिए देखा और फिर बोली, “थैंक्स अनय ।”

अनय ने काव्या के हाथ को छुआ और बोला, “टेक केयर । सी यू लेटर ।”

रागिनी ने इन चंद घंटों में अनय और काव्या को लेकर जो कुछ देखा उसे देखकर वो समझ नहीं पा रही थी ये उनकी किस तरह की दोस्ती है ? क्या ये केवल सिर्फ निर्दोष दोस्ती ही है या कुछ और है ?

अनय काव्या के पास से उठकर जा ही रहा था कि शगुन मौसी ने उसे टोका, “अरे बेटा, चाय पीकर जा । बन गई है।”

इस पर अनय ने उन्हें मना करते हुए कहा, “नहीं आंटी । अब अभी नहीं पी पाऊँगा ।”

काव्या ने अनय की आँखों में उभर आये आँसुओं को देखा । उसने इशारे से अनय को थोड़ी देर रुक जाने को कहा तो अनय मना नहीं कर पाया ।

चाय पीने के बाद थोड़ी देर रुककर अनय ने राजीव और रागिनी को नमस्ते की और वहाँ से चला गया ।अनय के जाने के बाद राजीव अनय और काव्या के बारें में सोचने लगा । अब तक अनय के काव्या के लिए भावनाओं देखकर उसे दोनों के रिश्तों में दोस्ती के अलावा कुछ और नजर आने लगा लेकिन इस बारें अभी काव्या से बात करना उसने ठीक नहीं समझा ।

अब राजीव अकेली पड़ गई काव्या के बारें में निर्णय लेने की परेशानी में था । इस वक्त काव्या को अकेला छोड़ना ठीक नहीं था और अनिकेत की परीक्षा की वजह से उसे सबका यहाँ रहना भी संभव नहीं लग रहा था । तभी रागिनी ने उसकी परेशानी को जैसे अनुभव कर लिया और बोली, “कुछ दिन तो हमें यहाँ रहना होगा । राजीव तुम विश्वास करो या न करो लेकिन मैं तो इस बात पर विश्वास करती हूँ कि मरने वाले की आत्मा बारह से पन्द्रह दिनों तक उसके घर में भटकती है । अनिकेत का तो अभी स्टडी वेकेशन चल रहा है । वो यहाँ रहकर भी पढ़ाई कर सकता है । तुम इधर से ही ऑफिस चले जाया करना ।”

इस पर काव्या उदास स्वर में बोली, “इट्स ओके मामी । आप लोग मेरी वजह से क्यों परेशान हो रहे है । मैं रह लूँगी अकेले । वैसे भी अब अकेले रहने की आदत तो डालनी ही पड़ेगी ।”

काव्या का जवाब सुनकर रागिनी ने राजीव की तरफ देखा । राजीव अभी भी गहरी सोच में डूबा हुआ था ।

“तुम्हारा अभी इस तरह अकेले रहना ठीक नहीं । मैं कुछ दिन इधर से ही ऑफिस चला जाऊँगा । बाद की बात बाद में सोचेंगे ।” राजीव ने कुछ सोचकर काव्या की बात का जवाब दिया ।

राजीव की बात सुनकर रागिनी बोली, “तो ठीक है । तुम और अनिकेत शाम को जाकर कपड़े और किताबें ले आना।” फिर अगले ही पल उसने अनिकेत से पूछा, “तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी न बेटा ?”

अनिकेत ने जवाब दिया, “नहीं मम्मी ।”

रागिनी अब अपनी जगह से खड़ी हो गई और शगुन मौसी के पास आकर बोली, “मौसी जी, अब मैं सब सम्हाल लूँगी । आप और परेशानी मत लीजिए ।”

इस पर शगुन बोली तुरन्त बोल उठी, “ये ले ! परेशानी कैसी ? काव्या मुझे मौसी कहती है तो मौसी माँ बराबर ही होती है । तुम लोग रात से परेशान हो । थोड़ा आराम कर लो तब तक मैं खाना बना लेती हूँ ।”

शगुन मौसी ने कहा तो काव्या बोली, “मौसी, मुझे खाने की बिल्कुल इच्छा नहीं है। आप मामा मामी, अनिकेत और अपने लिए ही बनाना ।”

काव्या की बात सुनकर शगुन मौसी जोर से बोली, “तुझे मेरी कसम जो नहीं खाया तो । थोड़ा ही सही पर खाना तो पड़ेगा।”

रागिनी ने शगुन मौसी को अधिकार के साथ कीचन में काम करते देखकर फिर उनसे आगे कुछ नहीं कहा । उसे शगुन मौसी की काव्या के लिए एक हद से ज्यादा भावनात्मक लगाव समझ नहीं आ रहा था । उसने राजीव को नहाने जाने को कहा और खुद सोफे पर आकर बैठ गई ।

शेष अगले हफ्ते

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत दिलचस्प कहानी

Ashish Dalal2 years ago

जी शुक्रिया भाई साहब

दादी की परी
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