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कवितानज़्म
औलाद किसी काबिल जाए तो घर छोड़ कर चली जाती है औलाद नाकाबिल रह जाए तो वालिद का कमाया खाती है ना तो दूर रहने का रंज-ओ-ग़म होता है काबिल औलाद को ना तो नाकाबिल औलाद हराम का खा - खाकर शर्माती है! @"बशर"