Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
मसर्रतों का गुल खिला नहीं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मसर्रतों का गुल खिला नहीं

  • 5
  • 2 Min Read

हमारे रंजोग़म पे मुस्कुराने वालेसे हमें गिला नहीं
हमारे साथ हंसने- रोने वाला हम को मिला नहीं

मौसमे-खिजां का चल रहा है वक़्त अपना 'बशर'
चमन में हमारे लिए मसर्रतों का गुल खिला नहीं

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر

1663935559293_1732381065.jpg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg