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कवितानज़्म
हमारे रंजोग़म पे मुस्कुराने वालेसे हमें गिला नहीं हमारे साथ हंसने- रोने वाला हम को मिला नहीं मौसमे-खिजां का चल रहा है वक़्त अपना 'बशर' चमन में हमारे लिए मसर्रतों का गुल खिला नहीं © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر