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कवितानज़्म
मिज़ाज-ओ-अंदाज़-ए-गुफ़्तगू न समझ सके आज तक हम उनका, लबों पर हंस कर इस तरह जज़्ब दिल में रख लेना रंजो-ग़म उनका! कमाल उन के इस जमाले -ख़्याले - मुसबत का क्या कहिए "बशर", रंजीदा हर शख़्स के सूरत ए हाल पर संजीदा हो जाना हरदम उनका! © "बशर" بشر