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कवितानज़्म
सलीक़ा-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन मिज़ाज-ए -मौसम की तरह नहीं है कि जगह और वक़्त देखकर बदल जाएगा कि सुब्ह कुछ और था दोपहर कुछ है और शाम कुछ और हो जाएगा कि वहां कुछ और था यहाँ कुछ और है और कहीं और कुछ और हो जाएगा "बशर" بشر