कविताअतुकांत कविता
शहर में रहने वाले माँ की आँखों के तारों
जानते हो, तुम्हारी माँ भी बहुत रोती है
जब तुम करते हो ऊंची आवाज़ में बात
जब तुम एक पल भी नहीं निकालते हो
अपनी ज़िंदगी से जन्मदायिनी माँ के लिए।।
आलीशान भवन में रहने वालों माँ के लाडलो
हर पल माँ चिंतित रहती है तुम्हारे लिए
फफक-फफककर रोती है बदन दर्द से
पर माँ के दर्द, मुश्किल से तुम्हें कोई मतलब
ही नहीं है, तुम तो हो ख़ुश अपने जीवन से।।
शहर की चकाचौंध में रात गुजारने वालों
जानते हो, तुम्हारी माँ ने तुम्हारे हित के लिए
अपना सर्वस्व किया था समर्पित, पर
तुम तो ज़िंदगी में इतने व्यस्त और मस्त हो
कि तुम्हें दिखाई ही नहीं दे रही है माँ की पीड़ा।।
महँगे स्मार्टफोन से स्मार्ट तस्वीर क्लिक करने वालों
जरा उस महँगे स्मार्टफोन से दिन में एक बार ही सही
अपनी माँ से मधुर स्वर में चंद बातें भी कर लिया करो
तुम्हें सुलाने के लिए माँ कई बार जागती थी रातों में
चंद पल सोती तो थी माँ पर, माँ का मन नहीं सोता था।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित