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माँ की आँखों के तारों - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

माँ की आँखों के तारों

  • 416
  • 5 Min Read

शहर में रहने वाले माँ की आँखों के तारों
जानते हो, तुम्हारी माँ भी बहुत रोती है
जब तुम करते हो ऊंची आवाज़ में बात
जब तुम एक पल भी नहीं निकालते हो
अपनी ज़िंदगी से जन्मदायिनी माँ के लिए।।

आलीशान भवन में रहने वालों माँ के लाडलो
हर पल माँ चिंतित रहती है तुम्हारे लिए
फफक-फफककर रोती है बदन दर्द से
पर माँ के दर्द, मुश्किल से तुम्हें कोई मतलब
ही नहीं है, तुम तो हो ख़ुश अपने जीवन से।।

शहर की चकाचौंध में रात गुजारने वालों
जानते हो, तुम्हारी माँ ने तुम्हारे हित के लिए
अपना सर्वस्व किया था समर्पित, पर
तुम तो ज़िंदगी में इतने व्यस्त और मस्त हो
कि तुम्हें दिखाई ही नहीं दे रही है माँ की पीड़ा।।

महँगे स्मार्टफोन से स्मार्ट तस्वीर क्लिक करने वालों
जरा उस महँगे स्मार्टफोन से दिन में एक बार ही सही
अपनी माँ से मधुर स्वर में चंद बातें भी कर लिया करो
तुम्हें सुलाने के लिए माँ कई बार जागती थी रातों में
चंद पल सोती तो थी माँ पर, माँ का मन नहीं सोता था।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

ह्रदयस्पर्शी

Ajay Goyal

Ajay Goyal 3 years ago

मार्मिक रचना...

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत भावपूर्ण रचना

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद सर जी

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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