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*मेरी ज़ुबान में रची बसी हिंदी*
जब से मेरे स्वर फूटे हिंदी के अलावा और किसी अन्य भाषा के नहीं। जो सुना वही उच्चारती गई।
शिक्षा का माध्यम भी हिंदी ही था। छटी कक्षा से सामान्य अँग्रेजी दिव्तीय भाषा के रूप में मिली। शायद आठवीं से संस्कृत भी सीखी। संस्कृत की मेरी शिक्षिका ने इतना अच्छा पढ़ाया कि रामः रामौ रामा: ,
मि व: म:
सि थ: थ
ति त: अन्ति
कई श्लोक, कारक, क्रियाएं आदि व्याकरण
अभी तक याद है। इस ज्ञान ने हिंदी में भी चार चाँद लगा दिए।
अब स्नातक कक्षाओं में हिंदी, संस्कृत व अंग्रेजी तीनों भाषाएँ चुनी। किन्तु दो भाषाएँ ही ले सकती थी तो संस्कृत छोड़ना पड़ा। यह मेरी भूल ही साबित हुई। फ़िर एम ए में अँग्रेजी ली। यह दूसरी बड़ी भूल थी।
अब जब नौकरी का प्रश्न आया तो अँग्रेजी माध्यम स्कूल से शुरुआत की।
अगला स्कूल मुझे कॉन्वेंट स्कूल मिला।
वहाँ कुछ सालों बाद एक सिस्टर इंचार्ज ने मुझे टोका, " मिसेस मेहता ! योर इंगलिश इज इंडियन इंग्लिश। यू इम्प्रुव योर प्रोननसियेशनस। "
हो गया ना कल्याण। अर्थात हिंदी हम हिन्दवासियों की ज़ुबान से जाती नहीं। फ़िर मैंने ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी को छान मारा।
सरला मेहता
इंदौर