कवितालयबद्ध कविताअन्य
#एक_गीत
"हम दोनों
जग के ठुकराए,
क्यों न मिलकर सुख दुख बाटें ।।
तुमने भी
जग के कहने पर अपनी खोली बाँह समेटी,
हमने भी
लोगों के चलते इक सिर पर से छाँह समेटी,
और अभी भी
भटक रहे हैं पछतावे के आँसू लेकर,
हम भी
तुम भी क्यों न मिलकर छीनें दो दिल के सन्नाटें..!!
चाह रहे हो
तुम भी रोना किसी एक को गले लगाकर,
चाह रहा मैं भी हल्कापन
अपनी हर पीड़ा बतलाकर,
हम दोनों
इक जैसे योद्धा एक युद्ध में संग संग हारे,
क्यों न
हम-तुम इक दूजे के जख्मों पे मिल पट्टी साटें..!!
✍️ कुमार आशू
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