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कवितानज़्म
मकां भी हैं, मकीं भी हैं मग़र कोई नहीं हक़दार है पराया तेरा येह शहर 'बशर' हम सब किराएदार हैं रैनबसेरे के बदले हमको उम्रकी क़ीमत चुकानी है आनी-जानी सारी दुनिया मुसाफ़िरखाना संसार है © 'बशर' bashar • بَشَر.