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रक्षाबंधन का अनमोल उपहार - संजय निगम (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायकलघुकथा

रक्षाबंधन का अनमोल उपहार

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विवेक, एक आईटी कंपनी में सफल करियर बना चुका युवक, अपने परिवार की उम्मीदों का केंद्र था। उसने कड़ी मेहनत से जीवन में बहुत कुछ हासिल किया था, लेकिन उसका सबसे बड़ा गर्व था कि उसने अपने परिवार, विशेष रूप से अपनी बहन राधा, के आशीर्वाद को हमेशा अपनी ताकत माना। राधा, जिसकी शादी एक सामान्य परिवार में हुई थी, हमेशा उसकी प्रेरणा रही थी।

लेकिन अचानक विवेक के जीवन में एक बड़ा संकट आ गया। उसे लीवर का संक्रमण हो गया, और डॉक्टरों ने उसे बताया कि उसकी जान बचाने के लिए लीवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय है। पैसे की कमी नहीं थी, लेकिन समस्या थी उपयुक्त डोनर की। दुर्भाग्य से, विवेक का ब्लड ग्रुप दुर्लभ था, जिससे डोनर मिलना लगभग असंभव हो गया था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, विवेक का स्वास्थ्य लगातार गिरता गया, और उसके परिवार पर मानो संकट का पहाड़ टूट पड़ा।

राधा, जो अपने परिवार में व्यस्त रहती थी, जब यह सुनती है कि उसके भाई की हालत इतनी नाजुक हो गई है, तो उसके मन में एक ही विचार आता है—उसे अपने भाई की मदद करनी होगी। राधा अपने पति से बात करती है, "मुझे भैया के पास जाना है, उन्हें मेरी जरूरत है।"

राधा के पति ने उसे पूरी तरह से समर्थन दिया, "तुम्हारे बिना भैया इस जंग को नहीं जीत पाएंगे। तुम जाओ, मैं सब संभाल लूंगा।"

राधा तुरंत विवेक के पास पहुँचती है और उसे देखकर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। लेकिन वह विवेक के सामने खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश करती है। "भैया," राधा ने विवेक के बगल में बैठते हुए कहा, "तुम्हें कुछ नहीं होगा, मैं यहाँ हूँ।"

विवेक ने धीमे स्वर में कहा, "राधा, शायद यह मेरी आखिरी लड़ाई है।"

राधा ने उसकी बात को काटते हुए कहा, "नहीं भैया, तुम हार नहीं मान सकते। मैं डॉक्टर से बात करूंगी।"

राधा डॉक्टर के पास जाती है और उसे बताती है कि वह अपना लीवर दान करना चाहती है। डॉक्टर ने उसे इसके जोखिमों के बारे में बताया और सलाह दी कि वह अपने परिवार से बात करे। लेकिन राधा का निर्णय अटल था। उसने डॉक्टर से कहा, "डॉक्टर साहब, मुझे अपने भाई की जान बचानी है। चाहे जो भी हो, मैं यह करूंगी।"

डॉक्टर ने राधा के टेस्ट करवाए, और चमत्कारिक रूप से यह पता चला कि उसका लीवर ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त था। राधा को यह जानकर राहत मिली, लेकिन उसके सामने बड़ी चुनौती थी इस प्रक्रिया के दौरान आने वाले जोखिमों का सामना करना। उसने अपने पति से बात की, और वह उसके इस निर्णय में पूरी तरह से साथ थे।

विवेक को इस बात का पता नहीं था कि उसकी बहन ने क्या निर्णय लिया है। राधा चाहती थी कि उसका भाई बिना किसी चिंता के इस ऑपरेशन का सामना करे।

रक्षाबंधन का दिन आ गया था। उस दिन अस्पताल का माहौल कुछ अलग था। राधा ने अपने ऑपरेशन से पहले ही राखी का थाल तैयार किया था। ऑपरेशन के लिए जाते समय राधा ने विवेक के पास एक छोटी सी चिट्ठी भिजवाई, जिसमें उसने लिखा था, "भैया, आज मैं तुम्हें राखी नहीं बांध पाऊंगी, लेकिन यह वचन देती हूँ कि हमारा रिश्ता हमेशा के लिए अमर रहेगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा।"

विवेक ने वह चिट्ठी पढ़ी और उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े। वह समझ गया कि उसकी बहन उसके लिए क्या करने जा रही है।

ऑपरेशन लंबा और कठिन था। परिवार के सभी सदस्य अस्पताल के बाहर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। राधा और विवेक दोनों को ऑपरेशन के बाद अलग-अलग आईसीयू में रखा गया था। ऑपरेशन सफल रहा था, लेकिन दोनों अभी भी पूरी तरह होश में नहीं थे।

जब विवेक को धीरे-धीरे होश आया, तो वह अपने आईसीयू में लेटा हुआ था। उसकी आँखें खुलते ही उसने सबसे पहले अपनी बहन के बारे में पूछा। डॉक्टर ने उसे बताया कि राधा भी ठीक हो रही है और उसे भी जल्द ही होश आ जाएगा। विवेक ने अंदर ही अंदर राहत की साँस ली।

कुछ दिनों के बाद, जब दोनों को एक ही कमरे में शिफ्ट किया गया, तो विवेक ने धीरे से राधा की तरफ देखा। उसकी बहन अब भी कमजोर थी, लेकिन उसकी आँखों में वही प्यार और दृढ़ता थी।

"राधा," विवेक ने धीरे से कहा, "तूने मेरे लिए जो किया है, उसके लिए मैं शब्द नहीं ढूंढ पा रहा हूँ।"

राधा मुस्कुराते हुए बोली, "भैया, मैंने सिर्फ वही किया जो एक बहन को करना चाहिए। हमारे रिश्ते का यही तो मतलब है।"

रक्षाबंधन का यह दिन परिवार के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। यह दिन केवल भाई-बहन के प्यार का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह समाज के लिए एक संदेश भी था कि रिश्ते खून के नहीं, बल्कि समर्पण, बलिदान, और अटूट विश्वास पर आधारित होते हैं।

राधा ने साबित कर दिया था कि भाई-बहन का रिश्ता दुनिया के सबसे अनमोल रिश्तों में से एक है। उसने समाज को यह संदेश दिया कि जब भी किसी अपने की जान बचाने का अवसर हो, हमें बिना किसी हिचकिचाहट के आगे बढ़ना चाहिए।

विवेक और राधा के इस अनमोल रिश्ते ने उन्हें एक नया जीवन दिया और उनके रिश्ते को और भी मजबूत बना दिया। राधा का यह बलिदान सिर्फ विवेक के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा बन गया।

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 1 month ago

भावपूर्ण और सुन्दर रचना

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 1 month ago

भावपूर्ण और सुन्दर रचना

संजय निगम1 month ago

आपकी सकारात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद

दादी की परी
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