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कवितानज़्म
पताही नहीं हयात में झंझावात है के झंझावात में हयात है हां मग़र अक़्सर जिंदगी से जुदा जिंदगी में कोई तो बात है अगर मिरे शहर में दिन है तो "बशर" उन के वहाँ पर रात है चाहतें हैं वस्लकी पर किसीसूरत मुमकिन नहीं मुलाक़ात है © 'बशर' بشر.