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चूक - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसस्पेंस और थ्रिलर

चूक

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चूक
शर्लीन की एक पहचान नहीं थी।वह हद दर्जे की मादक, मोहक, बिन्दास, अनुपम, अद्वितीय सुन्दरी थी। सौन्दर्य की देवी के रूप में उसका नाम लिया जाता था।सर्कस में वह अपने हुनर और ग्लैमर के जादू से जानी जाती थी।वह अपने काम से काम रखती। लोग मानते थे कि उसका जीवन रहस्यों से भरा पड़ा था।
वह इसी सर्कस में बच्ची से जवान हुई थी।उसका बचपन अत्यन्त गरीबी में गुजरा था।उसकी मां सर्कस में रसोई का काम संभालती थी।इससे पहले वे एक रिश्तेदार के यहां रहती थीं।जहां शर्लिन मात्र 9 वर्ष की अवस्था में दैहिक शोषण का शिकार हुई।

इस घटना ने उसका जीवन काफी प्रभावित किया।जब वह इस सर्कस की दुनिया में आयी, तो वह मेहनत और लगन से काफी जल्दी सीख गई।वह जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करती थी।बस अपने काम से काम रखती।
सर्कस एक तरह का प्रशिक्षित खेल हैं। जिसमें मार्शल आर्ट, नृत्य, जिम्नास्टिक, संवाद आदि में महमहारत हो तो आप दर्शकों का दिल जीत सकते हैं।उनसे वाहवाही बटोर सकते हैं और उन्हें टिकट खिड़की तक खींच कर ला सकते हैं।जहां मेले लगते मुख्य रूप से सर्कस का आयोजन अवश्य ही होता था। इसमें काम करने वाले कलाकार अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों का मनोरंजन करते थे।पतली सी रस्सी या धागे के सहारे उछल कूद करते,बाइक को गहरी खाई में कूदाते, जलते हुए छल्लों में कूदते, शेरों, हाथियों, कुत्तों और बंदरों द्वारा कमाल के करतब दिखाए जाते थे और दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया जाता था।
आज के दौर में मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होने से सर्कस देखने में लोगों की रूचि कम हुई है,पहले सर्कस और फिल्में ही मनोरंजन का मुख्य जरिया हुआ करती थी।बच्चों के बीच इसकी बड़ी लोकप्रियता थी।
उस दिन युवा लड़कियों और लड़कों द्वारा जिमनास्टिक हो चुका था। उन्होंने झूला, बैंड की संगत में नाच काअद्भुत प्रदर्शन किया । लड़कियों ने हाथ में छाता पकड़े स्टील के तार पर नृत्य किया।फिर चमकदार, रंगीन कपड़े पहने युवा लड़के और लड़कियों ने पिरामिड बनाए और अन्य एथलेटिक करतब दिखाए। बैंड और फ्लडलाइट्स ने सर्कस के माहौल को एक आलौकिक दृश्य दे रखा था। ट्रेपेज़ सबसे कठिन और खतरनाक और आखिरी करतब था।
उस शाम शर्लिन ट्रेपेज़ पर थी। बड़ा सा शामियाना, दर्शकों से खचाखच भरा था।यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए आकर्षण और रोमांच का खेल था।पुरुष, महिलाएं और बच्चे उत्सुकता से सांस को थामने वाले इस प्रदर्शन के शुरू होने का इंतजार कर रहे थे।अद्भुत प्रदर्शन शुरू हुआ।अभी शुरू ही हुआ था कि अचानक लोगों मैं चीख-पुकार मच गईं, उन्होंने शर्लिन को नीचे आते हुए देखा। पलक झपकने से पहले ही वह ज़मीन पर थी।
इस वारदात के बाद सर्कस में नेट लगाने का चलन शुरू हुआ, क्योंकि नेट न लगी होने के कारण शर्लिन को अपनी जिंदगी की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उसकी रीड की हड्डी, घुटने या यूं कहें कि कमर से नीचे का हिस्सा सदा के लिए अपाहिज हो गया।नौ महीने अस्पताल में रहने के बाद व्हीलचेयर ही उसका एकमात्र सहारा हो गई।
आज भी भी वह अस्पताल में एकांत के क्षणों में अपनी उन भाव- भंगिमाओं को याद करती है।सिहर उठती है उस क्षण को याद करके जब वह एक स्प्लिट सेकंड के अंतर से झूला पकड़ने से चूक गई थी!

गीता परिहार
अयोध्या

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दादी की परी
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