कवितानज़्म
अकेले में मेला और मेले में अकेला आदमी
बे - खुदी में हुआ इस क़दर अलबेला आदमी
हारकर कभी जीतकर रुठकर कभी प्रीतकर
इस ज़िन्दगी को खेल समझकर खेलाआदमी
दुनिया की तिज़ारत में ज़मीर अपना बेचकर
था तो करोड़ों का मग़र हो गया धेला आदमी
कहानी के किरदारों को निभातेहुए बनतारहा
भोलाभाला चालाकचतुर बावलागेला आदमी
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर"