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राष्ट्रीय बालिका दिवस
बालिका दिवस मनाने की शुरुआत 2009 से हुई।इसके लिए यही दिन इसलिए चुना गया क्योंकि इंदिरा गांधी इसी दिन 1966 को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।आज 24 जनवरी है,आज भी हर वर्ष की भांति इसे धूमधाम से मनाया जा रहा है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे हर जुबान पर है। बेटियों को पापा की परी,घर की लक्ष्मी कह कर महामंडित किया जा रहा है, किंतु वस्तुस्थिति क्या है?क्या उनके प्रति पक्षपात का रवैया बदला है, क्या उनके प्रति समाज की सोच बदली है,क्या वे दोयम दर्जे से पहली पादान पर आ गई हैं,क्या उन्हें समान अवसर उपलब्ध हैं,और क्या वे पहले से अधिक सुरक्षित हैं?
हमारे ही देश की विपक्षी पार्टी के नेता कहते हैं कि लड़कियों और महिलाओं के लिए भारत एक ख़तरनाक जगह है।यहां आए दिन बच्चियों से बलात्कार और हत्या के केस प्रकाश में आते रहते हैं,बावजूद इसके कि पोक्सो कानून लागू है ,हत्यायें कानूनन दंडनीय होने के बावजूद उनके प्रति अपराध होते हैं।
एक अकेली लड़की कहीं भी सुरक्षित नहीं है।अकेली लड़की नर भेड़ियों के लिए एक मौका है। उसे अपने घर की चारदीवारी में भी अभयदान नहीं है,उसके करीबी रिश्तेदार,पड़ोसी,दोस्त, समाज मानो घात लगाए बैठे हों।उसके
प्रति भावनात्मक, शारीरिक, मौखिक उत्पीड़न जारी है।हम सभी मानते हैं की लड़कियों में दुनिया की किसी भी ताकत का सामना करने की क्षमता लड़कों से कम नहीं है।फिर केवल शारीरिक बल कम होने से उन्हें कमतर आंका जाए ?
माना कि आज लड़कियों ने पंख पसारे हैं,उनके लिए तमाम लाभकारी योजनाएं लागू की गई हैं,वे आत्मनिर्भर हो रही हैं लेकिन आज भी शाम होते ही बेटी के अभिभावक उसके घर सुरक्षित लौट आने के प्रति आश्वस्त नहीं है।
इसी भय को जिस दिन समाज ने दूर कर दिया,हर बालिका को अपनी जिम्मेदारी समझ लिया,उस दिन सही अर्थों में बालिका दिवस मनाना सार्थक होगा।
मौलिक
गीता परिहार
अयोध्या ( फैजाबाद)