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कवितानज़्म
मैं हूँ कि साल दर साल अपने साल बढाए जा रहा हूँ, और वक़्त हैकि मुसलसल उम्र मेरी घटाए जा रहा है! मैं हूँ कि अपनी सोच और समझ को बढाने में लगा हूँ, दुनिया नहीं समझ पाएगा वक़्त मुझे बताए जा रहा है! © 'बशर' بشر.