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कवितानज़्म
रहबर की नहीं उन को ज़रूरत मंज़िल के जुनूँ वाले खुदही अपना रस्ता बनाते हैं, दरिया को रस्ता कौन बताता है पहाड़ों से चलकर खुदही तो समन्दर तक आते हैं! @"बशर"