कहानीसंस्मरण
संस्मरण..
लोकल ट्रेन के डिब्बे के अनुभव
ट्रेन की छोटी बड़ी सभी यात्राएं अनेक स्मृतियाँ जगा देती हैं. कुछ खट्टी कुछ मीठी.. विभिन्न व्यक्तित्व के लोगों से मुलाकात होती है. कुछ के कार्यकलाप अनायास ही उत्सुकता जगाते हैं.
बहुत से लोग अपने नौकरी के सम्बन्ध में प्रतिदिन यात्रा करते हैं.
ट्रेन यात्राओं में थकान भी कम अनुभव होती है.
मैंने भी लखनऊ से कानपुर की असंख्य यात्राएं की हैं बहुत सी, लखनऊ के क्रषि भवन के पास स्थित, ट्रेनिंग सेंटर जाते हुए
कुछ अन्य सम्बन्ध में. वैसे तो बहुत सी यादें हैं. उन्हीं में से एक लिख रहा हूँ.
काफी पहले की बात है, विद्युतीकरण के बाद लोकल ट्रेनें भी चलने लगीं. हर तबके के लोग चलते थे. कुछ छोटे व्यवसायी, कुछ छात्र, छात्राएं और हर पेशे के लोग चलते थे.एक यात्रा की बात है, मैं जिस ट्रेन से यात्रा कर रहा था वह सारे स्टेशनों पर रूकती थी. समय भी कुछ अधिक लेती थी. इस का किराया भी कम था. इस ट्रेन से रास्ते के गांवों में रहने वाले लोग भी खूब चलते थे. किराया भी कम था. डिब्बे में कुछ लोग आपस में बात कर रहे थे.
कुछ लोगों की आदत खूब जोर जोर से बात करने की होती है. . पूरे डिब्बे के यात्रियों को सम्वाद सुनाई पड़ते हैं.
एक बार कुछ लोगों में आपस में बच्चों की शिक्षा के बारे में बातचीत हो रही है थी. एक सज्जन अपने बच्चों की शिक्षा के बारे में किसी से बात कर रहे थे. उन्होंने अपने बेटे और बेटी को उच्च टेक्निकल शिक्षा दिलाई थे. कानपुर में उनका कोई छोटा सा व्यवसाय था. साधन सीमित थे. वे नौघड़ा में रहते थे. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उन्होंने पढ़ाई के खर्च के लिए अपना निजी मकान बेच दिया था. और किराये के मकान में रहने लगे थे. मैं केवल श्रोता मात्र था लेकिन बातचीत जोर जोर से हो रही थी अतः मैं पूरी बातचीत सुन रहा था.
किसी के बोलने से यह आभास हो जाता है कि सच बोल रहा है. उन्होंने कहा '' मकान क्या है साहब '' कंकड़ और पत्थर..बच्चों की अच्छी पढ़ाई जरूरी है.. बातचीत से पता चल रहा था कि बच्चे भी उनकी अपेक्षा के अनुरूप ही बहुत अच्छी तरह पढ़ रहे थे.बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए और अच्छे भविष्य के लिए,
उनकी त्याग की भावना देख कर एक सुखद अनुभूति हुई.
यात्रा समाप्त हुई और सभी अपने गन्तव्य पर चले गये.लेकिन उन सज्जन की सद्भावना और आक्रति अक्सर याद आ जाती है
कमलेश चन्द्र वाजपेयी
एन सी आर