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कवितानज़्म
अब जब येह दिल ही नहीं लगता तो सब रौनक-ओ-मसर्रत-ए-हयात बेकार लगती है उस का ग़म था तो ठीक था उस के ग़म के बग़ैर येह सारी कायनात बेकार लगती है @"बशर"