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पता ही नहीं चला कब आगया बुढापा जवानी से - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

पता ही नहीं चला कब आगया बुढापा जवानी से

  • 8
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पता ही नहीं चला कब आ गया येह बुढापा जवानी से
मिलता नहीं इल्म -ओ -अदब का खजाना आसानी से

दौलत-ए-सुकून-ए-क़ल्ब न हुई किसी को हासिल बशर
तलाशे-मसर्रत उम्र गुज़र गई मयकदे में ज़हरख़ुरानी से
© 'बशर' بشر bashar

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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