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कवितानज़्म
लफ़्ज़ों में पिरोकर अपने रंज-ओ-ग़म न बांटा करो बांटनेसे और बढेंगी बशर मसर्रतें कम न बांटा करो हक़ीक़त की ज़मींपे चलके मिलेगी मंजिले-मक़्सूद येह चांद सितारे छूनेकी हसरतें हरदम न बांटा करो © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر