कविताअतुकांत कविता
एक वक्त के बाद
हमारे घर के बड़े
हमारी आँखों में देखना चाहते हैं
अपने लिए फिक्र के दो आँसू
अकेलेपन की नदी में
डूबने से बचने के लिए
हमारे घर के बड़े
चाहते हैं कि हम उनकी उंगली
थामकर उनका सहारा बनें
हमें थाम लेना चाहिए उनका हाथ
आखिर हम भी एक दिन
हो जाएंगे बूढ़े।
©®कुमार संदीप