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मकरसंक्रांति का महत्व - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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मकरसंक्रांति का महत्व

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9 जनवरी ,शनिवार
विषय -मकर संक्रांति का महत्व
विधा -आलेख

इस दिन सूर्य धनु राशि छोड़कर -मकर राशि में प्रवेश करता है।यह पर्व जनवरी माह के १४वें या १५वें दिन पड़ता है।यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है।तमिलनाडू में इसे पोंगल, केरल और कर्नाटक में संक्रांति, गुजरात में उत्तरायण और उत्तरप्रदेश और बिहार में खिचड़ी,असम में बिहू, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में  लोहिड़ी के नाम से मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का पर्व बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराज़गी भूलाकर उनके घर गए थे। इस दिन से मलमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है। इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। 
ऐसी मान्यता है कि मकर-संक्रान्ति के दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं।इस दिन जप -तप, -दान -स्नान, -श्राद्ध -तर्पण आदि का विशेष महत्व है।कहां जाता है कि इस दिन दिये गए दान का फल अक्षय होता है,वह 100 गुना होकर लौटता है।
पौराणिक तथ्यों के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था। देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है।उत्तरायण को ‘देवताओं का दिन’ ,दक्षिणायन को ‘देवताओं की रात’ और मकर-संक्रान्ति को देवताओं का प्रभातकाल माना गया है।
एक विशेष कथा के अनुसार मकर संक्रांति
के दिन ही पवित्र गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई थीं और पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, क्योंकि उत्तरायण में देह छोड़ने वाले देवलोक में जाकर जन्म- मरण के बंधन से छूट जाते हैं।
इस दिन बिना स्नान किए भोजन न करें।यह पर्व प्रकृति के साथ उत्साह मनाने का पर्व है,इस दिन घर के अंदर या बाहर किसी पेड़ की कटाई-छंटाई भी न करें।नशा न करें। तला -भुनामसालेदार भोजन न करें। इस दिन तिल, मूंग दाल की खिचड़ी इत्यादि का सेवन करें। सूर्य देव की कृपा पाना चाहते हैं, तो संध्या काल में अन्न का सेवन न करें और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पूजा-पाठ करें।इस दिन गाय और भैंस को दोहना भी वर्जित माना जाता है।घर आए भिखारी, साधु या बुजुर्ग क़ो खाली हाथ न लौटाएं।लहसुन, प्याज और मांस का सेवन न करें। खाने में सात्विकता का पालन करें।
मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है। रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। सूर्य के उतरी गोलार्द्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है।सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है।

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