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कवितानज़्म
बाहर तुमने जो पाया खारा समंदर था मीठे पानी का सागर तो तिरे अंदर था मुर्शिद मौला पीर फ़कीर यायावर सब अपने अंदर तो कोई- कोई कलंदर था @"बशर"