कवितानज़्म
नीचे धरती ठण्डी ऊपर ठण्डा अम्बर हुआ
दाख़िल घरमें ठण्डक लेकर दिसम्बर हुआ
खेतों में किसान सीमा पर जवान ठिठुरते
पेड़ों पर पंछी ठिठुरे ठंडा सारा शजर हुआ
गली कूचे बस्ती ठंडी ठंडा सब शहर हुआ
ठंडी छत ठंडा आंगन ठण्डा सारा घर हुआ
ठंडी रातें ठंडी सुब्ह ठंडा हरेक मंज़र हुआ
दाख़िल घर में ठण्डक लेकर दिसम्बर हुआ
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر