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किसानों के नाम एक खत - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

किसानों के नाम एक खत

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  • 13 Min Read

देशवासियों की थाली में दो वक्त की रोटी पहुँचाने वाले,
ताउम्र तन पर कष्ट सहन कर चेहरे पर मुस्कान रखने वाले
किसान!
आपको बारम्बार प्रणाम।

आज एक ख़त लिखने का मन हुआ आपके नाम। जानता हूँ मेरा ख़त शायद आप तक पहुँच भी नहीं पाएगा, क्योंकि आप लोग ज़रूरत की सामग्री से भी वंचित रह जाते हैं। दिनभर मेहनत करने के बावजूद भी स्मार्टफोन भला आपके पास कैसे मौजूद हो सकता है? जिससे आप इस ख़त को अपनी आँखों से पढ़ पाएंगे। पर फिर भी लिख रहा हूँ। जिस तरह ईश्वर दिखाई नहीं देते हैं फिर भी हम अपनी दुआएं उन तक पहुँचा पाने में सफल हो जाते हैं, वैसे ही, मैं ऐसा मानता हूँ कि आज जो भी आपके संदर्भ में लिख रहा हूँ, शब्दों के माध्यम से वह आप तक ज़रूर पहुँच जाएगा..क्योंकि आप भी ईश्वर से तनिक भी कम नहीं हैं... या यूँ कहूँ कि आप भी ईश्वर ही हैं।

बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स हों, या गाँव, गल्ली-मुहल्ले की छोटी-छोटी दुकानें... आपकी मेहनत और लगन से पैदा किया सामान हर जगह मौजूद होता है। आपके बिना हम सब अधूरे हैं..हम ही क्यों.. शायद पूरा संसार ही अधूरा है। जिस तरह जल बिन मछली जल के अभाव में तड़प-तड़पकर मर जाती है ठीक उसी तरह यदि आप अन्न उगाना छोड़ देंगे तो शायद हम सब भी तड़प-तड़पकर परलोक सिधार जाएंगे इसमें भी किंचित संदेह नही है और इसके लिए कितनी तपस्या करते हैं आप लोग। ठंड के मौसम की शीत, बर्फीली हवाएँ आपके तन मन को झकझोरने का पूर्ण प्रयत्न करती होगी पर फिर भी आप खेतों में डटे रहते हैं, हार नहीं मानते हैं। आपका मन भी टूट जाता होगा उस वक्त, पर आप मजबूर होते हैं हालात के समक्ष। आर्थिक स्थिति लचर होने की स्थिति आपके मन को बेइंतहा कष्ट भी देती होगी..फिर भी मन में यह विश्वास रखना, कि "एक दिन सब ठीक हो जाएगा" यह सीख तो आपसे सीखनी चाहिए। जेठ की तपती धूप में तन तपाते हुए भी खेतों में काम करने में मग्न रहते हैं आप। तन पर बेइंतहा दर्द, दुख सहकर औरों की थाली तक रोटी, भोजन के अन्य सामान पहुंचाने का स्वर्णिम काम आपके सिवा कहाँ कोई करता है? आपकी शख्सियत को शब्दों में बाँधना किसी कलमकार की कलम से संभव नहीं है और ये अकाट्य सत्य है।
आपका संपूर्ण जीवन विभिन्न धार्मिक स्थलों, देश-विदेशों में घूमने में व्यतीत नहीं होता है बल्कि आप अपना संपूर्ण जीवन गुजारते हैं खेतों में,खलिहानों में। ताकि अपने घर के अलावा लोगों के घरों के चूल्हे जल सकें। मुन्ने की पढ़ाई हो सके, मुनिया की शादी अच्छे घर में हो सके। त्याग, तपस्या की साक्षात मूरत हैं आप। इसमें कोई संशय नहीं। आपके ऊपर मैं या कोई अन्य साहित्यिक सेवक भला क्या कुछ लिख सकता है? यूँ कहूँ कि "आप ही हमें गढ़ते हैं और हमारा अस्तित्व भी आपसे ही हैं" तो यह कहना शायद ग़लत नहीं होगा।

एक बार पुनः प्रणाम!!

आपकी धरती माँ का एक नन्हा-सा पुत्र
@कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित

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