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कवितानज़्म
आख़िर जब मरघट ही एक इन्सान की आख़िरी मंज़िल मुकाम और उसका मकान मुक़र्रर होता है तो फिर इस जहाँ में रह कर ओहदे शोहरत और मकान केलिए इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر