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कवितानज़्म
माना कि येह दुनिया दोज़ख है यहाँ पर क्या-कुछ सहना पड़ता है, बाद मरने के श्राद्ध करते हो क्या बहिश्त में भी भूखे रहना पड़ता है! © 'बशर' bashar بَشَر