कवितानज़्म
कोई क्या सोचता है किसीको क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या कहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई कहाँ रहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या करता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या चाहता है किसीको क्या फ़र्क पड़ता है
क्यान हीं चाहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या सहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
जीते-जी किसी का किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
मरनेपे पता लगताहै किसीको क्या फ़र्क पड़ता है
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر