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मरनेपे पता लगताहै क्या फ़र्क पड़ता है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मरनेपे पता लगताहै क्या फ़र्क पड़ता है

  • 4
  • 3 Min Read

कोई क्या सोचता है किसीको क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या कहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई कहाँ रहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या करता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या चाहता है किसीको क्या फ़र्क पड़ता है
क्यान हीं चाहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
कोई क्या सहता है किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
जीते-जी किसी का किसी को क्या फ़र्क पड़ता है
मरनेपे पता लगताहै किसीको क्या फ़र्क पड़ता है
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر

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