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मेरे सबअपने मुक़म्मल हों - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मेरे सबअपने मुक़म्मल हों

  • 11
  • 1 Min Read

अबतो एकही सपना बाक़ी है कि
मेरे बच्चों के सपने मुक़म्मल हों,
मैं बेशक जगसे अधूरा चला जाऊं
मग़र मेरे सबअपने मुक़म्मल हों!
@"बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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प्रपोजल
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