Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
अबतो एकही सपना बाक़ी है कि मेरे बच्चों के सपने मुक़म्मल हों, मैं बेशक जगसे अधूरा चला जाऊं मग़र मेरे सबअपने मुक़म्मल हों! @"बशर"