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मेरे संस्मरण - किशोर - संजय निगम (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

मेरे संस्मरण - किशोर

  • 27
  • 23 Min Read

मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली समझता हूँ क्योंकि मेरी बडी बड़ी आठ दुर्घटनायें होने के बाद भी मैं अपने सारे काम कर रहा हूँ। सन् 1987 में मेरी पहली या शायद दूसरी दुर्घटना के बाद का समय था। मेरी दुर्घटना के बाद बाद मेरा स्थानांतरण घर के पास की बैंक शाखा, जोकि सुबह की शाखा थे, में हो गया था। मैं स्वयं चल कर शाखा जा पाने की स्थिति में नहीं था। अभी वैसाखी के सहारे चल पा रहा था। वाहन चला पाना बिलकुल संभव नहीं था। अतः एक साइकिल रिक्शा को मेरे घर से शाखा तक जाने आने के लिए तय कर लिया गया था। घर पर मै और मेरी माता जी ही रहते थे। रिक्शा वाला जिसका नाम किशोर था, एक कम उम्र का लड़का था। किशोर बहुत ही सीधा, लगभग 5’8” ऊंचाई का एक गोरा सा लड़का था। अगर उससे कुछ पूंछा जाये तभी जबाब में वो बोलता था, बाकी समय वो चुप ही रहता था। वो समय का बहुत पाबन्द था। कभी कभी सुबह जब वो आता था मै तैयार नहीं हुआ होता था। जब भी मै तैयार नहीं होता था या मुझे कुछ देर होती थी। माता जी किशोर को चाय और नाश्ता देती थी। लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी भी किशोर ने चाय या नाश्ता किया हो। वो कुछ कह कर मना ही कर देता था।

समय अपनी गति से चल रहा था साथ साथ मै और किशोर भी चल रहे थे। गर्मियां अपने चरम पर थी। एक दिन दोपहर में जब किशोर मुझे लेने आया तो बैंक में अपनी ड्यूटी कर रहे एक पुलिस कर्मी ने उससे अपना अंगौछा (पुरुषो द्वारा पहना जाने वाला दुपट्टा जैसा वस्त्र) धो कर लाने को बोला। किशोर ने उसको साफ़ मना कर दिया और मुझसे बताया कि उस पुलिस कर्मी ने उससे क्या कहा। मैंने पुलिस कर्मी को बुलाया और उससे ऐसा फिर से ना करने को कहा।

मेरी बैंक शाखा में एक बुक क्लब चलता था। जिसमे सामूहिक योगदान से कुछ पुस्तके आती थी और सभी बैंक कर्मी उनको कुछ कुछ समय के लिए घर पढने के लिए ले जाते थे। उस समय Readers Digest नामक पुस्तक का हिंदी संस्करण सर्वोतम के नाम से आया करता था। मै भी उसका नियमित पाठक था। एक दिन छुट्टी के बाद जब मै घर जा रहा था और मेरे हाँथ में सर्वोतम थी। तभी किशोर ने कहा की मेरे पिता जी कहते है कि सर्वोतम वास्तव में सर्वोतम है। मै चकित था कि एक रिक्शा चलाने वाले के पिता जी सर्वोत्तम के बारे में अपने घर में बात करते है। मुझे लगा की किशोर की शायद कुछ और ही कहानी है। मेरे जोर देने पर उसने बताया कि पिता के किसी बात पर डाटने पर वो घर छोड़ आया था। और कानपुर में एक प्राइमरी स्कूल के परिसर में रहता था। और रिक्शा चला रहा था। लेकिन वो कभी भी अन्य रिक्शा वालो की तरह सामान्य सवारी नहीं लेता था। कुछ लोगों को उनके घर से कार्यालय या स्कूल ही छोड़ता था।

वो बिहार में कहीं का रहने वाला था। बहुत पूछने के बाद भी उसने अपने परिवार के विषय में या अपने घर के विषय में कुछ नहीं बताया। उस समय बिहार में हायर सेकेंडरी की परीक्षा होती थी जोकि ग्यारवी कक्षा के बराबर हुआ करती थी। जब मैंने उससे उसकी शिक्षा के बारे में पूँछा तो उसने बताया कि वो दशवीं कक्षा तक पढ़ा है। उत्तर प्रदेश में तो हाई स्कूल होता था तो मैंने उससे पूंछा की तुम दशवीं क्यों बोल रहे हो हाई स्कूल क्यों नहीं बोल रहे हो तब उसने मुझे बिहार के बारे में बताया। अब तक मै समझ चुका था की ये अच्छे परिवार का लड़का है। पढने में रूचि रखता है और परिस्थितियों वश रिक्शा चला रहा है। मैंने उसको उत्तर प्रदेश से हाई स्कूल करने के लिए कहा। उसने बताया कि उसके पास विद्यालय छोड़ने का प्रमाणपत्र (school leaving certificate) नहीं था। चुकि वो एक स्कूल परिसर में रहता था। मैंने उसको सुझाव दिया कि अगर वो वहां से बात करे तो शायद काम हो सकता था। मैंने उससे आग्रह किया कि मै उसको किताबो और फीस में मदद कर सकता हूँ। लेकिन उसने मेरी कभी भी कोई मदद नहीं ली। कुछ दिन में ही उसने बताया कि उसने हाई स्कूल की प्राइवेट परीक्षा का फॉर्म भर दिया है।

कुछ दिनों में मै ठीक हो गया था। अपने आप बैंक शाखा जाने लगा था। मेरा और किशोर का मिलना लगभग समाप्त हो चुका था। कुछ दिनों बाद छुट्टी का एक दिन था। मेरी माता जी घर के बाहर सब्जी खरीद रही थी। तभी किशोर वहां आया और माताजी का चरण स्पर्श करके मेरे बारे में पूंछा। उसके चहरे पर बहुत ख़ुशी थी। माता जी के पूछने पर उसने बताया कि वो हाई स्कूल फर्स्ट डिवीज़न से पास हो गया है। और तीन विषयों में उसको विशेष योग्यता वाले अंक मिले है। अब उसकी इक्छा और आगे पढने की थी। उस दिन माताजी ने उसको घर के अन्दर बुलाया और वो पहला दिन था जब उसने मेरे घर पर चाय और नाश्ता लिया। ये भी हमारे लिए अचरज ही था कि जो लड़का बार बार कहने पर भी कभी चाय नाश्ता नहीं करता था आज वो सामान्य भाव से सब ले रहा है। पूंछने पर उसने बताया कि वो आज इसलिए चाय नाश्ता कर रहा है क्योंकि आज ये सब एक रिक्शा वाले के लिए नहीं था।

हम सबके लिए यह एक शिक्षा है कि एक तुच्क्ष काम करते हुए भी अपने आप को कभी भी तुच्क्ष ना समझना कैसे किया जा सकता है। कुछ दिन बाद किशोर का पता करने पर यह पता चला कि अब वो यहाँ नहीं रहता और उसने कहीं पर नौकरी करनी शुरू कर दी है। जीवन में कई बार किशोर की याद आती है लेकिन उसके बाद उससे मिलना नहीं हो पाया। विश्वास है कि किशोर ने अपने जीवन में बहुत उन्नति की होगी और वो अपने घर वालो के पास फिर से चला गया होगा। किशोर तुम जहां भी होगे मेरा स्नेह तुम्हारे साथ ही होगा।

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 1 month ago

बहुत सुन्दर और सकारात्मक संस्मरण.

संजय निगम1 month ago

धन्यवाद सर

संजय निगम1 month ago

मेरे प्रिय संस्मरणों में से एक

दादी की परी
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