कवितानज़्म
सबको उनके चाहने वाले कहीं-न-कहीं खैर मिल जाते हैं
गैरों में भी अपने और अपनों में भी यहाँ गैर मिल जाते हैं
जिनकी चुभन के डर से बच कर निकलना चाहे हर कोई
कांटों में भी ख़ुश्बू-ए-चमन लुटाने वाले गुल खिल जाते हैं
हयात-ए-मुस्त'आर की आड़ी- टेढी भूल भुलैया में "बशर"
सफ़र की उलझी हुई इन राहों में भी रास्ते निकल जाते हैं
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر