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""बशर""
कविता
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
"बशर" किरदार तेरा कितना महान है
*मुफ्त की शय*
हमसफ़र
शर्माते हैं
सलीक़ा
*लिहाज*
दिल बदल गए
*उन्हींसे दूर रहना उन्हींको चाहना*
हुई नींदें हराम रातों की
ख़ुलूस किस शय का नाम है"
खामोशियां इस क़दर "बशर" नहीं अच्छी
खुदसे सुनना चाहता हूँ
जख़्म दिखलाकर तमाशा क्या करना
जन्नत को भी ला सकता है क़रीब अपने
मुर्शिद खड़ा देख कर
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं
खुद खुदा ही जाने उसकी खुदाई
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
इरादा न बदल
इरादा न बदल
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
हम भी तो देखें दिल उसका अपने सीने में डालकर
नुक़ूश-ए-दर्द अपने छोड़ चला
विसाले-यार न हुआ
हो गई पहचान उसे
चले जाएं रंजो-मलाल भी
कोई किसीसे जफ़ा करे ऐसा न खुदा करे
मां -बाप भी बंट जाते हैं
सच और हक़ की सब बात करते हैं
सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं
सुख़न कहने से रह गया
तहरीर ए कलम नायाब हो
खूबियाँ औरों की देख "बशर"
लोग अपनी ज़रूरतों को याद रखते हैं
राब्तों में दम नहीं है
उम्रे-तमाम इंतज़ार करने को भी हम हैं तैयार
सरक न जाएं रिश्ते हिफ़ाज़त रखा करो
तुम्हारा नाम बिगाड़ेंगे
गिला अब कुछ भी नहीं
दुश्मनी सरेआम किया करो
तुमको मुबारक ये जहाँ
उसीको हम देखते हैं
"बशर" खुद को धोका देता है
जानवर आदमी से प्यार करता है
अहसासात और जज़्बात यहाँ
बात कुछ भी नहीं
महरूम कर दिया दादू को पोते के दीदार से
राब्ते निभाते भी हैं
हिज्र-ओ-विसाल का सिलसिला रह गया
कौन है तेरा मेरे सिवा यहाँ पर
और फिर वो भी सो जाते हैं
साथ की पहचान
जीने केलिए जगह नहीं
मसर्रतों के गीत
मां - बाप के पास बैठ जाया करो
पैग़ाम रखो याद
न रही किसीसे उम्मीद
अकेले कैसे जिया जाता है
लफ़्ज़ों की भरमार किसी
रंग जाओ दिल के रंग में
हवाओं से जर्द पत्तों को इश्क़
रात काटी जाती है
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
सलाहियत से महरूम
इंतज़ार-ए-हबीब ताक़यामत रहेगा © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
हिम्मत बुलंद है जहां
जीना सिखाकर ही दम लेगी
सभी दौलते-दर्द से मालामाल हैं
"बशर" बड़ा मुख़्लिस था
वक़्त की बयार
शफ़्फ़ाफ़ हो क्या खाक दामन
हुआ मशहूर हयात में
अपना घर तो अपना घर होता है
आदमजात झुक जाएगी
इन्सान बस खुश रहा करे
उम्मीदों की कश्तियां
सुगम सरल डगर कहते हैं
मुश्क़िल है घरको घर करना
बहुत कुछ खोना पड़ता है
भीगी हुई वोह रातें सारी
दर-हक़ीक़त ये है कि मां की बदौलत हम हैं
पता लगा कि लापता निकले
जब तलक "बशर" बच्चा था
बर्बाद ज्यादा हुआ बचा कम है
"बशर" फिरभी अकेला था
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